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डामुल का कैदी


चढाये बैठी थी। कहने लगी-उन्हें मेरी परवाह नहीं, तो मुझे भी उनकी परवाह नहीं । मुझे आने ही न देतो थी। मैने शान्त तो कर दिया है , लेकिन कुछ बहाना करना ही पड़ेगा।

खूबचन्द ने आँखें मारकर कहा-मैं कह देंगा, गवर्नर साहब ने जरूरी काम से बुला भेजा था।

'जी नहीं, यह बहाना वहां न चलेगा। कहेगी---तुम मुझसे पूछकर क्यो नहीं गये । वह अपने सामने गवर्नर को समझती ही क्या है। रूप और यौवन बड़ी चीज़ है भाई साहब, आप नहीं जानते।'

'तो फिर तुम्ही बताओ, कोन-सा बहाना करूं'

'अजी बीस बहाने हैं। कहना, दोपहर से १०६ डिग्री का ज्वर था। अभी- अभी उठा हूँ।'

दोनो मित्र हँसे और लैला का मुजरा सुनने चले ।

( २ )

सेठ खूबचन्द का स्वदेशी-मिल देश के बहुत बड़े मिलो मे है। जबसे स्वदेशी- आन्दोलन चला है, मिल के माल की खपत दूनी हो गई है । सेठजी ने कपड़े की दर में दो आने रुपये बढ़ा दिये हैं। फिर भी विक्री में कोई कमी नहीं है , लेकिन इधर अनाज कुछ सस्ता हो गया है , इसलिए सेठजी ने मजूरी घटाने की सूचना दे दी है। कई दिन से मजूरो के प्रतिनिधियों और सेठजी में वहस होती रही। सेठजी जौ-भर भी न दबना चाहते थे। जब उन्हे आधी मजूरी पर नये आदमी मिल सकते हैं, तब वह क्यो पुराने आदमियो को रखें। वास्तव मे यह चाल पुराने आदमियों को भगाने ही के लिए चली गई थी।

अन्त मे मजूरों ने यही निश्चय किया कि हड़ताल कर दी जाय ।

प्रात काल का समय है। मिल के हाते मे मजूरो की भीड़ लगी हुई है। कुछ लोग चारदीवारी पर बैठे हैं , कुछ जमीन पर , कुछ इधर-उधर मटरगश्त कर रहे हैं । मिल के द्वार पर कास्टेवलों का पहरा है। मिल में पूरी हड़ताल है।

एक युवक को बाहर से आते देखकर सैकड़ो मजूर इधर-उधर से दौड़कर उसके चारो ओर जमा हो गये । हरेक पूछ रहा था -सेठजी ने क्या कहा ?