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डामुल का कैदी

सेठजी ने गंभीर स्वर में कहा - मैं भी तो पहली बार इसे देखकर चकित रह गया था। जान पड़ा गोपीनाथ ही खड़ा है।

'गोपी की घरवाली कहती है कि इसका स्वभाव भी गोपी ही का-सा है।'

सेठजी गूढ मुस्कान के साथ बोले-भगवान् की लीला है कि जिसको मैंने हत्या की, वह मेरा पुत्र हो। मुझे तो विश्वास है, गोपीनाथ ने ही इसमें अवतार लिया है।

प्रमीला ने माथे पर हाथ रखकर कहा - यही सोचकर तो कभी-कभी मुझे न जाने कैसी-कैसी शंका होने लगती है।

सेठजी ने श्रद्धा-भरी आँखों से देखकर कहा - भगवान् हमारे परम सुहृद है। वह जो कुछ करते हैं, प्राणियों के कल्याण के लिए करते हैं। हम समझते है, हमारे साथ विधि ने अन्याय किया, पर यह हमारी मूर्खता है। ईश्वर अबोध चालक नहीं है। जो अपने ही सिरजे हुए खिलौनों को तोड़-फोड़कर आनन्दित होता हो। न वह हमारा शत्रु है, जो हमारा अहित करने में सुख मानता है। वह परम दयालु है, मंगल-रूप है। यही अवलम्ब था, जिसने निर्वासन-काल में मुझे सर्वनाश से बचाया। इस आधार के बिना कह नहीं सकता, मेरी नौका कहाँ कहाँ भटकती और उसका क्या अन्त होता।

( ८ )

विन्नी ने दो कदम चलने के बाद कहा, मैंने तुमसे झूठ-मूठ कहा कि अम्माँ बीमार हैं। अम्माँ तो अब बिलकुल अच्छी हैं। तुम कई दिन से गये नहीं, इसी लिए उन्होंने मुझसे कहा - इस बहाने से बुला लाना। तुमसे वह एक सलाह करेंगी।

कृष्णचन्द्र ने कुतूहल-भरी आँखों से देखा।

मुझसे सलाह करेंगी! मैं भला क्या सलाह दूंगा? मेरे दादा आ गये, इसी लिए नहीं आ सका।

'तुम्हारे दादा आ गये। तो उन्होंने पूछा होगा, यह कौन लड़की है? 'नहीं, कुछ नहीं पूछा। दिल में कहते होंगे, कैसी बेशरम लड़की है!

दादा ऐसे आदमी नहीं हैं। मालूम हो जाता, यह कौन है, तो बड़े प्रेम से बातें करते। मैं तो कभी-कभी डरा करता था कि न जाने उनका मिज़ाज कैसा हो। सुनता था, कैदी बड़े कठोर-हृदय हुआ करते हैं, लेकिन दादा तो दया के देवता हैं।