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डामुल का कैदी

( ९ )

वही मिल है, जहाँ सेठ खूबचद ने गोलियां चलाई थीं। आज उन्हीं का पुत्र मजूरों का नेता बना हुआ गोलियो के सामने खड़ा है।

कृष्णचन्द्र और मैनेजर में बाते हो चुकी । मैनेजर ने नियमों का नर्म करना स्वी- कार न किया । हडताल की घोषणा कर दी गई । आज हड़ताल है। मजूर मिल के हाते में जमा है, और मैनेजर ने मिल की रक्षा के लिए फोजी गारद बुला लिया है। मिल के मजूर उपद्रव नहीं करना चाहते थे। हड़ताल केवल उनके असतोष का प्रद- र्शन थी लेकिन फौजी गारद देखकर मजूरो को भी जोश आ गया । दोनो तरफ से तैयारी हो गई है । एक ओर गोलियाँ हैं, दूसरी और ईट-पत्थर के टुकड़े।

युवक कृष्णचन्द्र ने कहा - आप लोग तैयार हैं, ? हमे मिल के अन्दर जाना है, चाहे सब मार डाले जायें।

बहुत-सी आवाजे आई -सब तैयार हैं।

'जिनके बाल-बच्चे हो, वह अपने घर चले जायँ '

बिन्नी पीके खीड़-खङी बोली-बाल-बच्चे सबकी रक्षा भगवान् करता

कई मजूर घर लौटने का विचार कर रहे थे। इस वाक्य ने उन्हे स्थिर कर दिया । जय-जयकार हुई और एक हजार मजूरों का दल मिल-द्वार की ओर चला। फौजी गारद ने गोलियां चलाई । सबसे पहले कृष्णचन्द्र गिरा, फिर और कई आदमी गिर पड़े। लोगो के पांव उखड़ने लगे।

उसी वक्त सेठ खूबचन्द नगे सिर, नगे पाँव, हाते में पहुंचे और कृष्णचन्द्र को गिरते देखा । परिस्थिति उन्हे घर ही पर मालूम हो गई थी। उन्होंने उन्मत्त होकर कहा- श्रीकृष्णचन्द्र की जय ! और दौड़कर आहत युवक को कंठ से लगा लिया । मजूरो मे एक अद्भुत साहस और धैर्य का संचार हुआ ।

'खूबचन्द ! - इस नाम ने जादू का काम किया। इस १५ साल मे 'खूबचन्द' ने शहीद का ऊँचा पद प्राप्त कर लिया या । उन्हीं का पुन आज मजूरों का नेता है। धन्य है भगवान् की लीला । सेठजी ने पुत्र को लाश जमीन पर लेटा दी और अवि- चलित भाव से बोले-भाइयो, यह लड़का मेरा पुत्र था। मैं पन्द्रह साल डामुल काट- कर लौटा, तो भगवान की कृपा से मुझे इसके दर्शन हुए। आज आठवां दिन है । आज फिर भगवान ने उसे अपनी शरण में ले लिया। वह भी उन्हीं को कृपा थी।