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मानसरोवर

गोबर-तुमने उसे सिर चढा रखा है, नहीं काम क्यो न करती । मजे से खाट पर बैठी चिलम पीती रहती है और सारे गाँव से लड़ा करती है। तुम बूढे हो गये, लेकिन वह तो अब भी जवान बनी है।

दीना--जवान औरत उसकी क्या बरावरी करेगी। सेंदुर, टिकली, काजल, मेंहदी मे तो उसका मन बसता है। बिना किनारदार रंगीन धोती के उसे कभी देखा ही नहीं, उस पर गहनो से भी जी नहीं भरता । तुम गऊ हो, इससे निबाह हो जाता है, नहीं तो अब तक गली-गली ठोकरें खाती होती।

गोबर-मुझे तो उसके वनाव-सिंगार पर गुस्सा आता है। काम कुछ न करेगी; पर खाने-पहनने को अच्छा ही चाहिए।

नेउर-तुम क्या जानो बेटा, जब वह आई थी, तो मेरे घर में सात हल की खेती होती थी। रानी बनी बैठी रहती थी। जमाना बदल गया, तो क्या हुआ, उसका मन तो वही है । घड़ी-भर चूल्हे के सामने बैठ जाती है, तो आँखें लाल हो जाती हैं और मूड़ थामकर पड़ जाती है। मुझसे तो यह नहीं देखा जाता। इसी दिन-रात के लिए तो आदमी शादी-ब्याह करता है, और इसमें क्या रखा है। यहाँ से जाकर रोटी बनाऊँगा, पानी लाऊँगा, तब दो कौर खायगी, नहीं मुझे क्या था, तुम्हारी तरह चार फकी मारकर एक लोटा पानी पी लेता। जबसे बिटिया मर गई, तबसे तो वह और भी लस्त हो गई। यह बड़ा भारी धक्का लगा। मां की ममता हम-तुम क्या समझेंगे बेटा ! पहले तो कभी-कभी डाँट भी देता था। अब किस मुह से डाटूँ?

दीना-तुम कल पेड़ पर काहे को चढे थे, अभी गूलर कौन पकी है ?

नेउर-उस बकरी के लिए थोड़ी पत्ती तोड़ रहा था। विटिया को दूध पिलाने को बकरी ली थी । अव बुढ़िया हो गई है, लेकिन थोड़ा दूध दे देती है। उसीका दूध और रोटी तो बुढिया का आधार है।

घर पहुंचकर नेउर ने लोटा और डोर उठया और नहाने चला कि स्त्री ने खाट पर लेटे-लेटे कहा- इतनी देर क्यों कर दिया करते हो ? आदमी काम के पीछे परान थोड़े ही दे देता है। जब मजूरी सबके बराबर मिलती है, तो क्यों काम के पीछे मरते हो?

नेउर का अन्तःकरण एक माधुर्य से सराबोर हो गया। उसके आत्म-समर्पण