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मानसरोवर

लेकिन आज की बातो ने नेउर को सशंक कर दिया । जल में एक बूंद रग की भाँति यह शंका उसके मन मे समाकर अतिरंजित होने लगी।

( २ )

गांव में नेउर को काम की कमी न थी; पर मजूरी तो वही मिलती थी, जो अब तक मिलती आई थी। इस मन्दी में वह मजूरी भी नहीं रह गई थी। एकाएक गांव में एक साधु कहीं से घूमते-फिरते आ निकले और नेउर के घर के सामने ही पीपल की छाँह में उनकी धूनी जल गई । गांववालों ने अपना धन्य भाग्य समझा । बाबाजी का सेवा-सत्कार करने के लिए सभी जमा हो गये। कहीं से लकड़ी आ गई, कहीं से बिछाने को कम्बल, कहीं से आटा-दाल । नेउर के पास क्या था ? बावाजी के लिए भोजन बनाने की सेवा उसने ली। चरस आ गई, दम लगने लगा।

दो-तीन दिन में ही बावाजी की कीर्ति फैलने लगी । वह आत्मदर्शी हैं, भूत- भविष्य सब बता देते हैं। लोभ तो छू नहीं गया। पैसा हाथ से नहीं छूते, और भोजन भी क्या करते हैं ! आठ पहर मे एक-दो बाटियां खा ली , लेकिन मुख दीपक की तरह दमक रहा है। कितनी मीठी बानी है ! सरल हृदय नेउर बावाजी का सबसे बड़ा भक्त था। उस पर कहीं बाबाजी की दया हो गई, तो पारस ही हो जायगा । सारा दुख-दलिद्दर मिट जायगा ।

भक्तजन एक-एक करके चले गये थे। खूब कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। केवल नेउर बैठा बावाजी के पाँव दबा रहा था ।

बाबाजी ने कहा-बच्चा, संसार माया है, इसमे क्यो फँसे हो ?

नेउर ने नत-मस्तक होकर कहा -अज्ञानी हूँ महाराज, क्या करूँ ? स्त्री है, उसे किस पर छोडूं ।

'तू समझता है, तू स्त्री का पालन करता है ?'

'और कौन सहारा है उसे बाबाजी ?'

'ईश्वर कुछ नहीं है, तू ही सब कुछ है ?'

नेउर के मन में जैसे ज्ञान उदय हो गया 1 तू इतना अभिमानी हो गया है ! तेरा इतना दिमाग । मजूरी करते-करते जान जाती है और तू समझता है, मैं ही बुधिया का सब कुछ हूँ। प्रभु, जो सारे संसार का पालन करते हैं, तू उनके काम में