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नेउर


दखल देने का दावा करता है। उसके सरल, ग्रामीण हृदय मे आस्था की एक ध्वनि- सी उठकर उसे धिकारने लगी। बोला-अज्ञानी हूँ, महाराज !

इससे ज्यादा वह और कुछ न कह सका। आँखों से दोन विषाद के आंसू गिरने लगे।

बाबाजी ने तेजस्विता से कहा-देखना चाहता है ईश्वर का चमत्कार । वह चाहे तो क्षण-भर मे तुझे लखपती कर दे। क्षण-भर में तेरी सारी चिन्ताएँ हर ले ! मैं उसका एक तुच्छ भक्त हूँ काकविष्ठा ; लेकिन मुझमें भी इतनी शक्ति है कि तुझे पारस बना दूं। तू साफ दिल का, सञ्चा, ईमानदार आदमी है। मुझे तुझ पर दया आती है। मैंने इस गांव मे सबको ध्यान से देखा । किसीमें भक्ति नहीं, विश्वास नहीं । तुझमें मैंने भक्त का हृदय पाया । तेरे पास कुछ चाँदी है ?

नेउर को जान पड़ रहा था सामने स्वर्ग का द्वार है।

'दस-पांच रुपये होगे महाराज !'

'कुछ चाँदी के टूटे-फूटे गहने नहीं हैं ?'

'घरवाली के पास कुछ गहने हैं।'

'कल रात को जितनी चाँदी मिल सके, यहां ला और ईश्वर की प्रभुता देख । तेरे सामने मैं चांदी को हाँड़ी में रखकर इसी धूनो मे रख दूँगा। प्रात काल आकर हाँड़ी निकाल लेना , मगर इतना याद रखना कि उन अशर्फियों को अगर शराब पीने में, जुआ खेलने में या किसी दूसरे बुरे काम में खर्च किया, तो कोढी हो जायगा । अब जा, सो रह । ही, इतना और सुन ले , इसकी चर्चा किसी से मत करना । घर- वाली से भी नहीं।'

नेउर घर चला, तो ऐसा प्रसन्न था, मानो ईश्वर का हाथ उसके सिर पर है। रात-भर उसे नींद नहीं आई। सबेरे उसने कई आदमियो से दो-दो, चार-चार रुपये उधार लेकर पचास रुपये जोड़े। लोग उसका विश्वास करते थे। कभी किसीका एक पैसा भी न दबाता था। वादे का पक्का, नीयत का साफ । रुपये मिलने मे दिवकत न हुई। पचीस रुपये उसके पास थे। बुधिया से गहने कैसे ले ? चाल चली। तेरे गहने बहुत मैले हो गये हैं। खटाई से साफ कर ले। रात-भर सटाई में रहने से नये हो जायेंगे। बुधिया चकमे में आ गई। हॉडी में खटाई ढालकर गहने भिगो दिये। जब रात को वह सो गई, तो नेउर ने रुपये भी उसी हांडी में डाल दिये और