'आप समर्थ हैं और मुझे आपके ऊपर विश्वास है।'
'भगवान् की जो इच्छा होगी, वही होगा।'
'इस अभागिनी का डोगा आप ही पार लगा सकते हैं।'
'भगवान्' पर भरोसा रखो।'
'मेरे भगवान् तो आप ही हो।'
नेउर ने मानो धर्म-संकट में पड़कर कहा-लेकिन बेटी, उस काम में बड़ा अनुष्ठान करना पड़ेगा, और अनुष्ठान मे सैकड़ों-हजारो का खर्च है। उस पर भी तेरा काज सिद्ध होगा या नहीं, यह मैं नहीं कह सकता। हाँ, मुझसे जो कुछ हो सकेगा, वह मैं कर दूंगा , पर सब कुछ भगवान् के हाथ में है। मैं माया को हाथ से नहीं छूता; लेकिन तेरा दुख नहीं देखा जाता।
उसी रात को युवती ने अपने सोने के गहनों की पेटारी लाकर बाबाजी के चरणों पर रख दी। बावाजी ने काँपते हुए हाथो से पेटारी खोली और चन्द्रमा के उज्ज्वल प्रकाश में आभूषणों को देखा। उनकी आँखे झपक गई । यह सारी माया उनकी है । वह उनके सामने हाथ बांधे खड़ी कह रही है-- मुझे अंगीकार कीजिए । कुछ भी तो करना नहीं है ; केवल पेटारी लेकर अपने सिरहाने रख लेना है और युवती को आशीर्वाद देकर बिदा कर देना है। प्रातःकाल वह आयेगी। उस वक्त वह उतनी दूर होंगे, जहां तक उनकी टाँगे ले जायँगी। ऐसा आशातीत सौभाग्य ! जब वह रुपयों से भरी थैलियां लिये गांव में पहुंचेंगे और बुधिया के सामने रख देंगे । ओह ! इससे बड़े आनन्द की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकते ।
लेकिन न जाने क्यों इतना ज़रा-सा काम भी उससे नहीं हो सकता। वह पेटारी
को उठाकर अपने सिरहाने, कंबल के नीचे दबाकर नहीं रख सकता। है कुछ नहीं
पर उसके लिए असूझ है, असाध्य है। वह उस पेटारी की ओर हाथ भी नहीं बढ़ा
सकता। हाथों पर उसका कोई बस नहीं। जाने दो हाथ, ज़बान से तो कह सकता
है। इतना कहने में कौन-सी दुनिया उलटी जाती है कि बेटी, इसे उठाकर इस कंबल
के नीचे रख दे। जबान कट तो न जायगो , मगर अब उसे मालूम होता है कि
ज़बान पर भी उसका काबू नहीं है । आँखो के इशारे से भी यह काम हो सकता है,
लेकिन इस समय आंखें भी बगावत कर रही हैं। मन का राजा इतने मन्त्रियों और
सामन्तों के होते हुए भी अशक्त है, निरीह है। लाख रुपये की थैली सामने रखी