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गृह-नीति


कर तब बिस्तर पर जाती थी। तुम्हारी स्त्री नौ बजे अपनी किताबें लेकर अपनी सह- नची में जा बैठती है, दोनों खिड़कियाँ खोल लेती है और मजे से हवा खाती है । मैं मरूं या जीऊँ, उससे मतलब नहीं , इसी लिए मैंने तुम्हे पाला था ?

बेटा-तुमने मुझे पाला था, तो यह सारी सेवा मुझसे लेनी चाहिए थी ; मगर तुमने मुझसे कभी नहीं कहा। मेरे अन्य मित्र भी हैं। उनमें भी मैं किसीको माँ की देह में मुक्कियाँ लगाते नहीं देखता ! आप मेरे कर्तव्य का भार मेरी स्त्री पर क्यों डालती हैं। यों अगर वह आपकी सेवा करे, तो मुझसे ज़्यादा प्रसन्न और कोई न होगा। मेरी आँखों मे उसकी इज्जत दूनी हो जायगो । शायद उससे और ज्यादा प्रेम करने लगूं, लेकिन अगर वह आपकी सेवा नहीं करती, तो आपको उसमे अप्रसन्न होने का कोई कारण नहीं है। शायद उसकी जगह मैं होता, तो मैं भी ऐसा ही करता। सास मुझे अपनी लड़की की तरह प्यार करती, तो मैं भी उसके तलुए सह- लाता , इसलिए नहीं कि वह मेरे पति की माँ होती , बल्कि इसलिए कि वह मुझसे मातृवत् स्नेह करती ; मगर मुझे खुद यह बुरा लगता है कि बहू सास के पाँच दबाये। कुछ दिन पहले स्त्रियां पति के पाँव दवाती थीं। आज भी उस प्रथा का लोप नहीं हुआ है , लेकिन मेरी पत्नी मेरे पाँव दबाये, तो मुझे ग्लानि होगी । मैं उससे कोई ऐसी खिदमत नहीं लेना चाहता, जो मैं उसको भी न कर सकूँ । यह रस्म उस ज़माने को यादगार है, जब स्त्री पति को लौंडो समझी जाती थी। अब पत्नी और पति दोनों बराबर हैं । कम-से-कम मैं ऐसा ही समझता हूँ।

माँ-वही तो मैं कहती हूँ कि तुम्ही ने उसे ऐसी-ऐसी बातें पढाकर शेर कर दिया है । तुम्हीं मुझसे बैर साध रहे हो। ऐसी निर्लज्ज, ऐसी बदज़वान, ऐसी टर्री, फूहड़ छोकड़ी संसार में न होगी। घर मे अक्सर महल्ले की बहनें मिलने आती रहती हैं। यह राजा की बेटी न जाने किन गॅवारों में पली है कि किसीका भो आदर- सत्कार नहीं करती। कमरे से निकलती तक नहीं। कभी कभी जब वह खुद उसके कमरे में चली जाती हैं, तो भी यह गधी चारपाई से नही उठती। प्रणाम तक नहीं करती, चरण छूना तो दूर की बात है।

बेटा-वह देवियाँ तुमसे मिलने आती होंगी। तुम्हारे और उनके में बीच न- जाने क्या बातें होती हों; अगर तुम्हारी बहू बीच मे आ कूदे, तो मैं उसे बदतमीज कहूँगा। कम-से-कम मैं तो कभी पसन्द न करूंगा कि जब मैं अपने मित्रों से बातें