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गृह-नीति

माँ-(खिलकर) मेरे लड़के को कोई सजा देगा, तो क्या में पान-फूल से उसको पूजा करूँगी?

बेटा-हरेक बेटा अपनी माता से इसी तरह की कृपा की आशा रखता है और सभी माताएँ अपने लड़को के ऐवो पर पर्दा डालती हैं। फिर बहुओं की ओर से क्यों उनका हृदय इतना कठोर हो जाता है, यह मेरी समझ में नहीं आता। तुम्हारी बहू पर जब दूसरी स्त्रियाँ चोट करें, तो तुम्हारे मातृस्नेह का यह धर्म है कि तुम उसकी तरफ से क्षमा मांगो, कोई बहाना कर दो, उनकी नजरों में उसे उठाने की चेष्टा करो। इस तिरस्कार मे तुम क्यो उनसे सहयोग करती हो ? तुम्हे क्यों उसके अपमान मे मज़ा आता है। मैं भी तो हरेक ब्राह्मण या बड़े-बूढे का आदर-सत्कार नहीं करता। मैं किसी ऐसे व्यक्ति के सामने सिर झुका हो नहीं सकता, जिससे मुझे हार्दिक श्रद्धा न हो। केवल सफेद बाल और सिकुड़ी हुई खाल और पोफ्ला मुंह और झुको हुई कमर किसीको आदर का पात्र नहीं बना देतो, और न जनेज या तिलक या पण्डित और शर्मा की उपाधि ही भक्ति की वस्तु है। मैं लकोर-पोट सम्मान को नैतिक अपराध समझता हूँ। मैं तो उसीका सम्मान करूँगा, जो मनसा-वाचा-कर्मणा हर पहलू से सम्मान के योग्य है। जिसे मैं जानता हूँ कि मक्कारी और साथ-साधन और निन्दा के सिवा और कुछ नहीं करता, जिसे मैं जानता हूँ कि रिशवत और सूद तया खुशामद की कमाई खाता है, अगर वह ब्रह्मा की आयु लेकर भी मेरे सामने आये, तो मैं उसे सलाम न करूं। इसे तुम मेरा अहङ्कार कह सकतो हो , लेकिन मैं मजबूर हूँ, जब तक मेरा दिल न झुके, मेरा सिर भी न झुकेगा। मुमकिन है, तुम्हारी बहू के मन में भी उन देवियों की ओर से अश्रद्धा के भाव हो। उनमे से दो-चार को मैं भी जानता हूँ। हैं वह सब बड़े घर की ; लेकिन सबके दिल छोटे, विचार छोटे। कोई निन्दा की पुतली है, तो कोई खुशामद में यकता, कोई गाली गलौज मे अनुपम । सभी रुढियों को गुलाम, ईर्ष्या-द्वेष से जलनेवाली । एक भी ऐसी नहीं, जिसने अपने घर को नरक का नमूना न बना रखा हो , पर तुम्हारी बहू ऐसौ औरतो के आगे सिर नहीं झुकाती, तो मैं उसे दोषी नहीं समझता।

मां-अच्छा, अब चुप रहो बेटा, देख लेना तुम्हारी यह रानी एक दिन तुमसे चूल्हा न जलवाये और झाडू न लगवाये, तो सही। ओरतो को बहुत सिर चढाना

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