उसे पूरी स्वतन्त्रता है, जैसे चाहे अपने बच्चे को पाले । अगर वह तुमसे कोई सलाह
पूछे, तो प्रसन्न-मुख से दे दो, न पूछे तो समझ लो, उसे तुम्हारी मदद की ज़रूरत
नहीं है। सभी माताएँ अपने बच्चे को प्यार करती हैं और वह अपवाद नहीं
हो सकती।
माँ-तो मैं सब कुछ देखू और मुंह न खोलूँ। घर में आग लगते देखूँ और चुपचाप मुँह मे कालिख लगाये खड़ी रहूँ?
बेटा-तुम इस घर को जल्द छोड़नेवाली हो, उसे बहुत दिन रहना है। घर की हानि लाभ को जितनी चिन्ता उसे हो सकती है, तुम्हे नहीं हो सकती। फिर मैं कर ही क्या सकता हूँ? ज्यादा-से-ज्यादा उसे डाँट बता सकता हूँ; लेकिन वह डाँट की परवाह न करे और तुर्की-वतुर्की जवाब दे, तो मेरे पास ऐसा कौन-सा साधन है, जिससे मैं उसे ताड़ना दे सकूँ ?
मां-तुम दो दिन न बोलो, तो देवता सीधे हो जायें, सामने नाक रगड़े ।
बेटा-मुझे इसका विश्वास नहीं है। मैं उससे न बोलूंगा, वह भी मुझसे न बोलेगी। ज्यादा पीछे पडूंगा, तो अपने घर चली जायगी !
मां-ईश्वर वह दिन लाये । मैं तुम्हारे लिए नयी बहू लाऊँ।
बेटा-सम्भव है, वह इसकी भी चाची हो ।
[ सहसा वह आकर खड़ी हो जाती है। माँ और बेटा दोनों स्तम्भित हो जाते है, मानो कोई बम-गोला आ गिरा हो। रूपवती, नाजुक मिज़ाज, गर्वीली रमणी है, जो मानो शासन करने के लिए ही बनी है। कपोल तमतमाये हुए हैं ; पर अधरों पर विष-भरी मुस्कान है और आँखो में व्यंग्य-मिला परिहास ।]
मां-(अपनी झेप छिपाकर ) तुम्हें कौन बुलाने गया था ?
वहू- क्यो, यहाँ जो तमाशा हो रहा है, उसका आनन्द मैं न उठाऊँ ?
बेटा-मां-बेटे के बीच में तुम्हे दखल देने का कोई हक नहीं।
(बहू की मुद्रा सहसा कठोर हो जाती है।)
बहू-अच्छा, आप ज़बान वन्द रखिए। जो पति अपनी स्त्री को निन्दा सुनता
रहे, वह पति बनने के योग्य नहीं। वह पतिधर्म का क, ख, ग भी नहीं जानता !
मुझसे अगर कोई तुम्हारी बुराई करता, चाहे वह मेरी प्यारी मां ही क्यो न होती,
तो मैं उसकी जवान पकड़ लेती। तुम मेरे घर जाते हो, तो वहाँ तो जिसे देखती