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कानूनी कुमार


हैं। यह तो भिखारियो को बात हुई, जो द्वार-द्वार झोली लिए घूमते हैं। इसके उपरान्त टोकाधारी, कोपीनधारी और जटाधारी समुदाय भी तो है, जिसको संख्या कम से कम दो करोड़ होगी। जिस देश मे इतने हरामखोर, मुफ्त का माल उड़ाने- वाले, दूसरो को कमाई पर मोटे होनेवाले प्राणी हों, उनकी दशा क्यों न इतनी हीन हो । आश्चर्य यही है कि अबतक यह देश जीवित कैसे है ! ( नोट करता है) एक बिल को सख्त जरुरत है, तुरन्त पेश करना चाहिए -नाम हो 'भिखमंगा-बहिष्कार बिल !' खूब जूतियां चलेंगी, धर्म के सूत्रधार खूब नाचेंगे, खूब गालियां देंगे, गवर्नमेंट भी कन्नी काटेगी , मगर सुवार का मार्ग तो कटकाकीणं है ही। तीनों बिल मेरे ही नाम से हो, फिर देखिए कैसी खलबली मचती है।

(आवाज़ आती है ...चाय गरम ! चाय गरम !! मगर ग्राहकों की संख्या बहुत कम है। कानूनी कुमार का ध्यान चायवाले की ओर आकर्षित हो जाता है । )

कानूनी-( आप-ही-आप ) चायवाले की दूकान पर एक भी ग्राहक नहीं, क्या मूर्ख देश है। इतनी बलवर्द्धक वस्तु और ग्राहक कोई नहीं । सभ्य देशो में पानी की जगह चाय पी जाती है । ( रिपोर्ट देखकर ) इङ्गलैड मे पाँच करोड़ पौण्ड की चाय जाती है। इङ्गलैंडवाले मूर्ख नहीं हैं। उनका आज संसार पर आधिपत्य है, इसमें चाय का कितना बड़ा भाग है, कौन इसका अनुमान कर सकता है। और यहां वेचारा चायवाला खड़ा है, और कोई उसके पास नहीं फटकता। चीनवाले चाय पी-पीकर स्वाधीन हो गये , मगर हम चाय न पीयेंगे। क्या अकल है। गवर्नमेट का सारा दोष है। कीटो से भरे हुए दूध के लिए इतना शोर मचता है , भगर चाय को कोई नहीं पूछता, जो कीटों से खाली, उत्तेजक और पुष्टिकारक है ! सारे देश की मति मारी गई है । ( नोट करता है ) गवर्नमेट से प्रश्न करना चाहिए। असेम्बली खुलते- ही प्रश्नों का तांता बांध दूंगा।

प्रश्न-क्या गवर्नमेट बताएगी कि गत पांच सालों मे भारतवर्ष में चाय की खपत कितनी बढ़ी है, और उसका सर्वसाधारण में प्रचार करने के लिए गवर्नमेंट ने क्या कदम लिये हैं।

(एक रमणी का प्रवेश । कटे हुए केश, आड़ी मांग, पारसी रेशमी साड़ी, कलाई पर घड़ी, आँखों पर ऐनक, पाँव मे ऊँची एड़ी की लेडी शू, हाथ मे एक वटुवा लटकाये हुए, साड़ी में ब्रूच है, गले में मोतियों का हार ।)