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मानसरोवर

कानूनी--( हाथ बढाकर ) हल्लो मिसेज़ बोस ! आप खूब आई', कहिए, किधर की सैर हो रही है। अबक्री तो 'आलोक' में आपको कविता बड़ी सुन्दर थी। मैं तो पढकर मस्त हो गया। इस नन्हें-से हृदय में इतने भाव कहाँ से आ जाते हैं, मुझे आश्चर्य होता है। शब्द-विन्यास की तो आप रानी हैं। ऐसे-ऐसे चोट करनेवाले भाव आपको कैसे सुझ जाते हैं ?

मिसेज़ बोस--दिल जलता है, तो उसमें आप-से-आप धुएँ के बादल निकलते जव तक स्त्री-समाज पर पुरुषों का यह अत्याचार रहेगा, ऐसे भावों को कमी न रहेगी।

कानूनी-क्या इधर कोई नयी बात हो गई।

बोस-रोज़ ही होती रहती है। मेरे लिए डाक्टर बोस की आज्ञा नहीं कि किसी से मिलने जाओ, या कहीं सैर करने जाओ। अबको कैसी गरमी पड़ी है कि सारा रक्त जल गया; पर मैं पहाड़ों पर न जा सकी। मुझसे यह अत्याचार, यह गुलामी नहीं सही जाती।

कानूनी---डाक्टर बोस खुद भी तो पहाड़ों पर नहीं गये।

बोस-वह न जायें, उन्हें धन की हाय-हाय पड़ी है। मुझे क्यों अपने साथ लिये मरते हैं ? वह क्लब नहीं जाना चाहते, उनका समय रुपये उगलता है, मुझे क्यों रोकते हैं ? वह खद्दर पहनें, मुझे क्या अपने पसन्द के कपड़े पहनने से रोकते हैं ? वह अपनी माता और भाइयों के गुलाम बने रहे, मुझे क्यों उनके साथ रो- रोकर दिन काटने पर मजबूर करते हैं ? मुझसे यह बरदाश्त नहीं हो सकता । अमे- रिका में एक कटु वचन कहने पर सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। पुरुष जरा देर से घर आया और स्त्री ने तलाक दिया। वह स्वाधीनता का देश है, वहाँ लोगों के विचार स्वाधीन हैं। यह गुलामों का देश है, यहाँ हरएक बात में उसी गुलामी की छाप है । मैं अब डाक्टर बोस के साथ नहीं रह सकती । नाकों दम आ गया। इसका उत्तरदायित्व उन्हीं लोगों पर है, जो समाज के नेता और व्यवस्थापक बनते हैं। अगर आप चाहते हैं कि स्त्रियों को गुलाम बनाकर स्वाधीन हो जायें, तो यह अनहोनी बात है। जब तक तलाक का कानून न जारी होगा, आपका स्वराज्य आकाश-कुसुम ही रहेगा। डाक्टर बोस को आप जानते हैं, धर्म में उनकी कितनी श्रद्धा है। खब्त कहिए। मुझे धर्म के नाम से घृणा है। इसी धर्म ने स्त्री-जाति को पुरुष की दासी