लेने को तैयार हैं, फिर भी जनता की आँखें नहीं खुलती। इन मूर्खों की आँखें उस
वक्त तक न खुलेंगी, जब तक कानून न बन जायगा।
कानूनी-( गम्भीर भाव से) हाँ, मैं भी सोच रहा हूँ। ज़रूर कानून से मदद लेनी चाहिए । एक ऐसा कानून बन जाय, कि जिन लोगों की आय ५००) से कम हो, वह होटलो में रहे। क्यो ?
आचार्या-आप अगर यह कानून बनवा दें, तो आनेवाली सन्तान आपको अपना मुक्तिदाता समझेगी। आप एक कदम मे देश को ५०० वर्ष की मंजिल तय करा देंगे।
कानूनी--तो लो, अबकी यह कानून झो असेम्बली खुलते ही पेश कर देगा। बड़ा शोर मचेगा। लोग देश-द्रोही और जाने क्या-क्या कहेगे, पर इसके लिए तैयार हूँ। कितना दु ख होता है, जब लोगेा को अहीर के द्वार पर लुटिया लिये खड़ा देखता हूँ। स्त्रियो का जीवन तो नरक-तुल्य हो रहा है। सुबह से दस-बारह बजे रात तक घर के धन्धों से फुरसत नहीं। कभी बरतन मांजो, कभी भोजन वनाओ, कभी झाड़ू लगाओ। फिर स्वास्थ्य कैसे बने, जीवन कैसे सुखो हो, सैर कैसे करें, जीवन के आमोद-प्रमोद का आनन्द कैसे उठावे, अध्ययन कैसे करें। आपने खूब कहा, एक कदम में ५०० सालो की मंजिल पूरी हुई जाती है
आचार्या-तो अबकी विल पेश कर दीजिएगा ?
कानूनी-अवश्य !
( आचार्या हाथ मिलाकर चला जाता है)
कानूनी कुमार खिड़की के सामने खड़ा होकर 'होटल-प्रचार-विल' का मसविदा सोच रहा है । सहसा पार्क में एक स्त्री सामने से गुजरती है। उसकी गोद में एक बच्चा है, दो बच्चे पीछे-पीछे चल रहे हैं, और उदर के उभार से मालूम होता है कि गर्भवती भी है। उसका कृश शरीर, पीला मुख और मन्द गति देखकर अनुमान होता है कि उसका स्वास्थ्य बिगड़ा हुआ है, और इस भार का वहन करना उसे कष्टप्रद है।
कानूनी कुमार-( आप ही-आप ) इस समाज का, इस देश का और इस
जीवन का सत्यानाश हो, जहाँ रमणियों को केवल बच्चा जनने की मशीन समझा
जाता है। इस बेचारी को जीवन का क्या सुख ! कितनी ही ऐसी बहनें इसी जंजाल
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