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मानसरोवर


में फंसकर ३०, ३५ की अवस्था मे, जब कि वास्तव में जीवन को सुखी होना चाहिए, रुग्ण होकर संसार-यात्रा समाप्त कर देती हैं। हा भारत ! यह विपत्ति तेरे से कब टलेगी ! संसार में ऐसे-ऐसे पाषाण-हृदय मनुध्य पड़े हुए हैं, जिन्हें इन दुखिया- रियों पर जरा भी दया नहीं आती। ऐसे अन्धे, ऐसे पाषाण, ऐसे पाखंडी समाज को, जो स्त्री को अपने वासनाओ की वेदी पर बलिदान करता है, कानून के सिवा और किस विधि से सचेत किया जाय। और कोई उपाय नहीं है। नर-हत्या का जो दण्ड है, वही दंड ऐसे मनुष्यों को मिलना चाहिए । मुबारक होगा वह दिन, जब भारत मे इस नाशिनी प्रथा का अन्त हो जायगा --स्त्री का मरण, बच्चो का मरण और जिस समाज का जीवन ऐसी संतानों पर आधारित हो उसका मरण ! ऐसे लदमाशो को क्यों न दण्ड दिया जाय ? कितने अन्धे लोग हैं। बेकारी का यह हाल कि आधी जन संख्या मक्खियां मार रही हैं, आमदनी का यह हाल कि सर-पेट किसीको रोटियाँ नहीं मिलती, बच्चों को दुध स्वप्न मे भी नहीं मिलता, और यह अन्धे हैं कि बच्चे-पर-बच्चे पैदा करते जाते हैं। 'सतान-निग्रह-बिल' की जितनी ज़रूरत है, इस समय देश को उतनी और किसी कानून की नहीं। असेंबली खुलते हो यह बिल पेश करुंगा। प्रलय हो जायगा, यह जानता हूँ; पर और उपाय ही क्या है। दो बच्चों से ज्यादा जिसके हो, उसे कम-से-कम पाँच वर्ष की कैद, उसमे पांच महीने से कम काल-कोठरी न हो । जिसकी आमदनी सौ रुपये से कम हो, उसे संतानोत्पत्ति का अधिकार ही न हो (मन में उस चिल के बाद की अवस्था का आनन्द लेकर ) कितना सुखमय जीवन हो जायगा ! हां, एक दफा यह भी रहे कि एक संतान के बाद कम-से-कम सात वर्ष तक दूसरी सतान न आने पावे। तब इस देश में सुख और सतोष का साम्राज्य होगा, तब स्त्रियों और बच्चों के मुंह पर खून की सुखी नज़र आयेगी, तब मजबूत हाथ-पाँव और मजबूत दिल और जिगर के पुरुष उत्पन्न होंगे।

(मिसेज़ कानूनी कुमार का प्रवेश)

कानूनी कुमार जल्दी से रिपोर्टों और पत्रों को समेट देता है, और एक उपन्यास खोलकर बैठ जाता है।

मिसेज़-क्या कर रहे हो ? वही धुन !

कानूनी--एक उपन्यास पढ रहा हूँ।

मिसेज़-तुम सारी दुनिया के लिए कानून बनाते हो, एक कानून मेरे लिए भी