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मानसरोवर


के लिए जिसे बुलाना चाहो, बुला लो। जितने आदमी और हथियार जमा करना चाहो, जमा कर लो। हम ललकारकर आयेंगे और दिन-दहाड़े आयेंगे। हम चोर नहीं हैं, हम वीर हैं और हमारा विश्वास बाहुबल में है। हम जानते हैं कि लक्ष्मी उसी के गले में जयमाल डालती है, जो धनुष को तोड़ सकता है, मछली को वेध सकता है। आदि...

सेठजी ने तुरन्त बही-खाते बन्द कर दिये और रोकड़ सँभालकर तिजोरी में रख दिया और सामने का द्वार भीतर से बन्द करके मरे हुए-से केसर के पास आकर बोले-आज फिर वही खत आया केसर ! सब आज ही आ रहे हैं।

केसर दोहरे बदन की स्त्री थी, यौवन बीत जाने पर भी युवती, शौक-सिंगार में लिप्त रहनेवाली, उस फलहीन वृक्ष को तरह, जो पतझड़ में भी हरी-भरी पत्तियों से लदा रहता है। सन्तान को विफल कामना में जीवन का बड़ा भाग बिता चुकने के बाद, अब उसे अपनी संचित माया को भोगने की धुन सवार रहती थी। मालूम ‌ नहीं कब आँखें बन्द हो जायें, फिर यह थाती किसके हाथ लगेगी, कौन जाने ? इसलिए उसे सबसे अधिक भय बीमारी का था, जिसे वह मौत का पैगाम समझती थी और नित्य ही कोई-न-कोई दवा खातो रहती थी। काया के इस वस्त्र को उस समय तक उतारना न चाहती थी, जब तक उसमें एक तार भी बाकी रहे । वाल-बच्चे होते तो वह मृत्यु का स्वागत करती , लेकिन अब तो उसके जीवन ही के साथ अन्त था, फिर क्यों न वह अधिक-से-अधिक समय तक जिये। हो, वह जीवन निरानन्द अवश्य था, उस मधुर ग्रास की भांति जिसे हम इसलिए खा जाते हैं कि रख-रखे सड़ जायगा।

उसने घबराकर कहा-मै तुमसे कबसे कह रही हूँ कि दो-चार महीनों के लिए - यहाँ से कहीं भाग चलो , लेकिन तुम सुनते ही नहीं । आखिर क्या करने पर तुले हुए हो ?

सेठजी सशङ्क तो थे, और यह स्वाभाविक था। ऐसी दशा में कौन शान्त रह सकता था; लेकिन वह कायर नहीं थे। उन्हें अब भी विश्वास था कि अगर कोई सकट आ पड़े, तो वह पीछे क़दम न हटायेंगे। जो कुछ कमजोरी आ गई थी, वह संकट को सिर पर मॅडराते देखकर भाग गई थी। हिरन भी तो भागने की राह न पाकर शिकारी पर चोट कर बैठता है। कभी-कभी नहीं, अकसर सकट पड़ने पर ही आदमी के जौहर खुलते हैं। इतनो देर में सेठजी ने एक तरह से भावी विपत्ति का सामना‌