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लाटरी

मैंने विक्रम को अर्थपूर्ण आँखों से देखा, विक्रम ने मुझे । आँखों ही में हमने सलाह कर ली और निश्चया भी कर लिया। विक्रम ने कुन्ती से कहा- अच्छा, तुझसे एक बात कहें, किसी से कहेगी तो नहीं ? नहीं, तू तो बड़ी अच्छी लड़की है, किसी से न कहेगी ! अबकी तुझे खूब पढ़ाउँगा और पास करा दूंगा। बात यह है कि हम दोनों ने भी लाटरी का टिकट लिया है। हम लोगों के लिए भी ईश्वर से प्रार्थना क्यिा कर , अगर हमें रुपये मिले, तो तेरे लिए अच्छे-अच्छे गहने बनवा देगे । सच!

कुन्ती को विश्वास न आया । हमने कस्में खाई । वह नखरे करने लगी। जब हमने उसे सिर से पाँव तक सोने और हीरे मढ देने की प्रतिज्ञा की, तब वह हमारे लिए दुआ करने पर राजी हुई।

लेकिन उसके पेट मे मनों मिठाई पच सकती थी, वह जरा-सी बात न पची। सीधे अन्दर भागी और एक क्षण मे सारे घर में यह खबर फैल गई। अब जिसे देखिए, विक्रम को डाँट रहा है, अम्माँ भी, चचा भी, पिता भी, केवल विक्रम की शुभ-कामना से या और किसी भाव से, कौन जाने-बैठे-बैठे तुम्हे हिमाकत ही सुझती है। रुपये लेकर पानी मे फेक दिये। घर मे इतने आदमियो ने तो टिकट लिया ही था, तुम्हे लेने की क्या जरूरत थी, क्या तुम्हें उसमे से कुछ न मिलते ? और तुम भी मास्टर साहब, बिलकुल घोघा हो। लड़के को अच्छी बातें क्या सिखा- ओगे, और उसे चौपट किये डालते हो ।

विक्रम तो लाडला बेटा था । उसे और क्या कहते। कहीं रूठकर एक-दो जून खाना न खाय, तो आफत ही आ जाय । मुझपर सारा गुस्सा उतरा । इसकी सोहबत में लड़का विगढ़ा जाता है।

‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे' वाली कहावत मेरी आँखो के सामने थी। मुझे अपने बचपन की एक घटना याद आई। होली का दिन था। शराब की एक बोतल मॅगवाई थी। मेरे मामू साहब उन दिनों आये हुए थे। मैंने चुपके से कोठरी में जाकर ग्लास में एक चूट शराब डाली और पी गया। अभी गला जल ही रहा था और आँखें लाल ही थी, कि मामू साहब कोठरी मे आ गये और मुझे मानो सेंध मे गिरफ्तार कर लिया और इतना विगडे-इतना विगड़े कि मेरा कलेजा सूखकर छुहारा हो गया । अम्मा ने भी डाटा, पिताजी ने भी डांटा, मुझे आँसुओं से उनकी कोधाग्नि शान्त करनी पड़ी , और दोपहर ही को मामू साहब नशे से पागल होकर गाने लगे,