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मानसरोवर


फिर रोये, फिर अम्मां को गालिया दी, दादा को मना करने पर मारने दौड़े और आखिर में कै करके जमीन पर बेसुध पड़े नजर आये।

( ३ )

विक्रम के पिता बड़े ठाकुर साहब, और ताऊ छोटे ठाकुर साहब दोनो जड़वादी थे, पूजा-पाठ की हँसी उड़ानेवाले, पूरे नास्तिक ; मगर अव दोनों बड़े निष्ठावान् और ईश्वर-भक्त हो गये थे। बढ़े ठाकुर साहब तो प्रात काल गंगा-स्नान करने जाते और मन्दिरों के चक्कर लगाते हुए दोपहर को सारी देह मे चन्दन लपेटे घर लौटते । छोटे ठाकुर साहब घर पर ही गर्म पानी से स्नान करते और गटिया से ग्रस्त होने पर भी राम-नाम लिखना शुरू कर देते। धूप निकल आने पर पार्क की ओर निकल जाते और चींटियों को आटा खिलाते। शाम होते ही भाई अपने ठाकुर द्वारे में जा बैठते और आधी रात तक भागवत् की कथा तन्मय होकर सुनते । विक्रम के -बड़े भाई प्रकाश को साधु-महात्माओं पर अधिक विश्वास था। वह मठों और साधुओं के अखाड़ों और कुटियों की खाक छानते, और माताजी को तो भोर से आधी रात तक स्नान, पूजा और व्रत के सिवा दूसरा काम ही न था। इस उम्र मे भी उन्हे सिंगार का शौक था , पर आजकल पूरी तपस्विनी बनी हुई थी। लोग नाहक लालसा को बुरा कहते हैं। मैं तो समझता हूँ, हममें जो यह भक्ति और निष्ठा और धर्म-प्रेम है, वह केवल हमारी लालसा, हमारी हवस के कारण। हमारा धर्म हमारे स्वार्थ के बल पर टिका हुआ है। हवस मनुष्य के मन और बुद्धि का इतना संस्कार कर सकती है, -यह मेरे लिए बिलकुल नया अनुभव था। हम दोनों भी ज्योतिषियों और पण्डितों प्रश्न करके अपने को कभी दुखी कर लिया करते थे।

ज्यों-ज्यों लाटरी का दिन समीप आता जाता था, हमारे चित्त की शान्ति उड़ती जाती थी। हमेशा उसी ओर मन टॅगा रहता। मुझे आप-ही-आप अकारण सदेह होने - लगा, कि कहीं विक्रम मुझे हिस्सा देने से इनकार कर दे, तो मैं क्या करूँ । साफ इनकार कर जाय कि तुमने टिकट मे साझा किया ही नहीं। न कोई तहरीर है, न कोई दूसरा सबूत । सब कुछ विक्रम की नीयत पर है। उसकी नीयत जरा भी डांवाडोल हुई और मेरा काम तमाम। कहीं फरियाद नहीं कर सकता, मुंह तक नहीं खोल सकता । अब अगर कुछ कहूँ भी तो कोई लाभ नहीं। अगर उसकी नीयत में फितूर