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लाटरी

प्रकाश के मुख पर आशा-पूर्ण, शान्त मुस्कान थी। क्रोध, लज्जा या प्रतिशोध की भावना का नाम भी न था। .

बड़े ठाकुर ने और व्यग्र होकर पूछा-लेकिन हुआ क्या, यह क्यों नहीं बतलाते ? किसीसे मार-पीट हुई हो, तो थाने में रपट करवा दूं।

प्रकाश ने हलके मन से कहा-मार-पीट किसीसे नहीं हुई साहब । बात यह है कि मैं ज़रा झक्कड़ बाबा के पास चला गया था। आप तो जानते हैं, वे आदमियो की सूरत से भागते हैं और पत्थर लेकर मारने दौड़ते हैं। जो डरकर भागा, वह गया। जो पत्थर की चोटें खाकर भी उनके पीछे लगा रहा, वह पारस हो गया । वह यहीं परीक्षा लेते हैं। आज मै वहाँ पहुँचा, तो एक पचास आदमी जमा थे, कोई मिठाई लिये, कोई बहुमूल्य भेट लिये, कोई कपड़ों के थान लिये । झाक्कड़ बाबा ध्याना- वस्था में बैठे हुए थे। एकाएक उन्होंने आँखें खोली और यह जन-समूह देखा, तो कई पत्थर चुनकर उनके पीछे दौड़े। फिर क्या था, भगदड़ मच गई। लोग गिरते- पड़ते भागे। हुर् हो गये । एक भी न टिका। अकेला मैं घण्टेघर की तरह वहीं डटा रहा। बस, उन्होंने पत्थर चला हो तो दिया। पहला निशाना सिर में लगा। उनका निशाना अचूक पड़ता है । खोपड़ी भन्ना गई । खून की धारा बह चली, लेकिन मै हिला नहीं । फिर बाबाजी ने दूसरा पत्थर फेंका। वह हाथ में लगा। मै गिर पड़ा और बेहोश हो गया । जब होश आया, तो वहां सन्नाटा था। बाबाजी भी गायब हो गये थे। अन्तर्ध्दान हो जाया करते हैं । किसे पुकारूँ, किससे सवारी लाने को कहूँ । मारे दर्द के हाथ फटा पड़ता था और सिर से अभी तक खून जारी था। किसी तरह उठा और सीधा डाक्टर के पास गया । उन्होंने देखकर कहा-हड्डी टूट गई है और पट्टी बाँध दी । गर्म पानी से सेकने को कहा है। शाम को फिर आयेगे , सगर चौट लगी तो लगी,अब लाटरी मेरे नाम आई वरी है। यह निश्चय है। ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि झक्कड़ बाबा को मार खाकर कोई नामुराद रह गया हो। मैं तो सबसे पहले बाबा को कुटी बनवा दूंगा।

बड़े ठाकुर साहब के मुख पर सतोष की झलक दिखाई दी। फौरन् पलंग विछ गया । प्रकाश उस पर लेटे । ठकुराइन पखा झलने लगी, उनका मुख भी प्रसन्न था । इतनी चोट खाकर दस लाख पा जाना कोई बुरा सौदा न था ।

छोटे ठाकुर साहब के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। ज्योंही बड़े ठाकुर भोजन करने

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