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लाटरी

पुजारी ने समर्थन किया-हाँ सरकार, भक्तों की रक्षा के लिए तो भगवान् क्षीरसागर से दौड़े और गज को ग्राह के मुंह से बचाया।

एक क्षण के बाद छोटे ठाकुर साहब ने सिर उठाया और पुजारीजी से बोले- क्यों पुजारीजी, भगवान तो सर्वशक्तिमान् हैं, अन्तर्यामी, सबके दिल का हाल जानते हैं ?

पुजारी ने समर्थन किया--हाँ सरकार, अन्तर्यामी न होते, तो सबके मन की चात कैसे जान जाते ? शवरी का प्रेम देखकर स्वय उसकी मनोकामना पूरी की।

पूजन समाप्त हुआ। आरती हुई। दो भाइयो ने आज ऊँचे स्वर से आरती गाई और बड़े ठाकुर ने दो रुपये थाल में डाले। छोटे ठाकुर ने चार रुपये डाले। बड़े ठाकुर ने एक बार कोप-दृष्टि से देखा और मुँह फेर लिया ।

सहसा बड़े ठाकुर ने पुजारी से पूछा- तुम्हारा मन क्या कहता है पुजारोजी ?

पुजारी बोला-~~-सरकार को फते है।

छोटे ठाकुर ने पूछा-और मेरी ?

पुजारी ने उसी मुस्तैदी से कहा-आपकी भी फते है !

बड़े ठाकुर श्रद्धा से डूबे भजन गाते हुए मंदिर से निकले-

'प्रभुजी, मैं तो आयो सरन तिहारे, हाँ प्रभुजी ।'

एक मिनट में छोटे ठाकुर साहब भी मदिर से गाते हुए निकले -

अब पति राखो मोरे दयानिधि तोरी गति लखि ना परे ।

मैं भी पीछे निकला और जाकर मिठाई बांटने में प्रकाश बाबू को मदद करना चाहा, पर उन्होंने थाल हटाकर कहा-आप रहने दीजिये, मैं अभी बाँटे डालता हूँ। अब रह ही कितनी गई है।

मैं खिसियाकर डाक्खाने की तरफ़ चला कि विक्रम मुस्किराता हुआ साइकिल पर आ पहुँचा ! उसे देखते ही सभी जैसे पागल हो गये। दोनों ठाकुर सामने ही खड़े थे। दोनों बाज की तरह झपटे । प्रकाश के थाल में थोड़ी-सी मिठाई बच रही थी। उसने थाल जमीन पर पटका और दौड़ा। और मैंने तो उस उन्माद मे विक्रम की गोद में उठा लिया, मगर कोई उससे कुछ पूछता नहीं, सभी जय-जयकार की हाँक लगा रहे हैं।

बड़े ठाकुर ने आकाश की ओर देखा-- बोलो राजा रामचन्द्र की जय !