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मानसरोवर

छोटे ठाकुर ने छलाँग मारी-बोलो हनुमानजी की जय !

प्रकाश तालियां बजाता हुआ चीखा-दुहाई झकड़ बाबा की !

विक्रम ने और ज़ोर से कहकहा मारा-फिर अलग खड़ा होकर बोला-जिसका नाम आया है, उससे एक लाख लूंगा। बोलो, है मजूर ?

बड़े ठाकुर ने उसका हाथ पकड़ा --पहले वता तो!

'ना ! यों नहीं बताता।'

छोटे ठाकुर बिगडे-महज़ बताने के लिए एक लाख ? शाबाश !

प्रकाश ने भी त्योरी चढाई-क्या डाकखाना हमने देखा नहीं है ?

'अच्छा, तो अपना-अपना नाम सुनने के लिए तैयार हो जाओ।'

सभी फौजी अटेंशन की दशा में निश्चल खड़े हो गये ।

'होश-हवाश ठीक रखना।'

सभी पूर्ण सचेत हो गये।

'अच्छा तो सुनिए कान खोलकर, इस शहर का सफाया है। इस शहर का ही नहीं, सम्पूर्ण भारत का सफाया है, अमेरिका के हब्शी का नाम आ गया ।

बड़े ठाकुर मल्लाये-~~-झूठ-झूठ, बिलकुल मूठ !

छोटे ठाकुर ने पैतरा बदला-~-कभी नहीं । तीन महीने की तपस्या यों ही रही ! वाह।

प्रकाश ने छाती ठोक्कर कहा-यहां सिर फुड़वाये और हाथ तुड़वाये बैठे हैं, दिलगी है।

इतने में और पचासों आदमी उधर से रोनी सुरत लिये निकले। ये बेचारे भी डाकखाने से अपनी किस्मत को रोते चले आ रहे थे। मार ले गया अमेरिका का हब्शी ! अभागा ! पिशाच ! दुष्ट !

अब कैसे किसी को विश्वास न आता । बड़े ठाकुर झलाये हुए मन्दिर में गये और पुजारी को डिसमिस कर दिया. इसी लिए तुम्हें इतने दिनों से पाल रखा है । हराम का माल खाते हो औ चैन करते हो ?

छोटे ठाकुर साहब की तो जैसे कमर टूट गई। दो-तीन बार सिर पीटा और वहीं बैठ गये; मगर प्रकाश के क्रोध का पारावार न था । उसने अपना मोटा सोटा लिया और झक्कड़ बाबा की मरम्मत करने चला ।