'विलायत की औरतें बन्दूक चलाती होंगी, यहाँ की औरते क्या चलायेंगी। हां,
हाथ-भर की जवान चाहे चला लें।'
'यहाँ की औरतों ने वहादुरी के जो-जो काम किये हैं, उनसे इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। आज भी दुनिया उन वृत्तान्तों को पढ़कर चकित हो जाती है।'
'पुराने जमाने की बातें छोडो। तब औरतें बहादुर रही होंगी। आज कौन बहादुरी कर रही है ?
'वाह ! अभी हज़ारों औरतें घर-बार छोड़कर हँसते-हँसते जेल चली गई, यह बहादुरी नही थी ? अभी पंजाब मे हरनाम कुँवर ने अकेले चार सशस्त्र डाकुओ को गिरफ्तार किया और लाटसाहब तक ने उसकी प्रशसा की।' .
क्या जाने वह कैसी औरतें हैं। में तो, डाकुओं को देखते ही चक्कर गवाकर गिर पड़ूंगी।'
उसी वक्त नौकर ने आकर कहा--सरकार, थाने से चार कानिस्टिबिल आये हैं, आपको बुला रहे हैं।
सेठजी प्रसन्न होकर बोले--थानेदार भी है ?
'नहीं सरकार, अकेले कानिस्टिबिल हैं।'
'थानेदार क्यों नहीं आया ?'--यह कहते हुए सेठजी ने पान खाया और बाहर निकले।
( २ )
सेठजी को देखते ही चारों कान्सटेविलों ने झुककर सलाम किया, बिलकुल अँगरेजी कायदे से, मानो अपने किसी अफसर को सेल्यूट कर रहे हों। सेठजी ने उन्हे बेचों पर बैठाया और बोले-दारोगाजी का मिजाज तो अच्छा है ? मैं तो उनके पास आनेवाला था।
चारों में जो सबसे प्रौढ था और जिसको आस्तीन पर कई बिल्ले लगे हुए थे, बोला--आप क्यों तकलीफ करते, वह तो खुद ही आ रहे थे ; पर एक बड़ी जरूरी तहकीकात आ गई, इससे रुक गये। कल आपसे मिलेंगे। जबसे यहाँ डाकुओं की खबरें आई हैं, बेचारे बहुत घबराये हुए हैं । आपकी तरफ हमेशा उनका ध्यान रहता है। कई बार कह चुके हैं कि मुझे सबसे ज्यादा फिकर सेठजी की है । गुमनाम खत तो आपके पास भी आये होंगे ?