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नया विवाह


को उसके मरने का बड़ा दुःख हुआ। मित्रों ने समवेदना के तार भेजे । एक दैनिक पत्र ने शोक प्रकट करते हुए लीला के मानसिक और धार्मिक सद्गुणों का खूब बढ़ा- कर वर्णन किया। लालाजी ने इन सभी मित्रों को हार्दिक धन्यवाद दिया और लोला के नाम से बालिका विद्यालय में पांच वजीफे प्रदान किये। और मृतक-भोज तो जितने समारोह से किया गया, वह नगर के इतिहास में बहुत दिनो तक याद रहेगा।

लेकिन एक महीना भी न गुजरने पाया था कि लालाजी के मित्रों ने चारा डालना शुरू कर दिया और उसका यह असर हुआ कि छ महीने को विधुरता के तप के बाद उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया। आखिर बेचारे क्या करते ? जीवन में एक सहचरी को आवश्यकता तो थी ही, और इस उम्र मे तो एक तरह से अनिवार्य हो गई थी।

( २ )

जबसे नयी पत्नी आई, लालाजी के जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन हो गया । दूकात से सब उन्हें उतना प्रेम नहीं था। लगातार हफ्तों न जाने से भी उनके कार- वार में कोई हर्ज नहीं होता था । जीवन के उपभोग की जो शक्ति दिन-दिन क्षीण होती जाती थी, अब वह छोटे पाकर सजीव हो गई थी, सूखा पेड़ हरा हो गया था, उसमे नयी-नयो कोपलें फूटने लगी थीं। मोटर नया आ गया था, कमरे नये फर्नीचर से सजा दिये गये थे, नौकरो की भी संख्या बढ गई थी, रेडियो आ पहुँचा था, और प्रतिदिन नये-नये उपहार आते रहते थे। लालाजी की बूढ़ी जवानी जवानो की जवानी से भी प्रखर हो गयी थी, उसी तरह जैसे विजली का प्रकाश चन्द्रमा के प्रकाश से ज्यादा स्वच्छ और नेत्ररक्षक होता है। लालाजी को उनके मित्र इस रूपान्तर पर बधाइयां देते, तब वे गर्व के साथ कहते-भई, हम तो हमेशा जवान रहे और हमेशा जवान रहेगे। बुढापा यहाँ आये तो उसके मुंह मे कालिख लगाकर गधे पर उलटा सवार कराके शहर से निकाल दें। जवानी और वुढापे को न जाने क्यो लोग अवस्था से सम्बद्ध कर देते हैं । जवानी का उम्र से उतना ही सम्बन्ध है, जितना धर्म का आचार से, रुपये का ईमानदारी से, रूप का शृङ्गार से। आजकल के जवानी को आप जवान कहते हैं ? मैं उनकी एक हजार जवानियों को अपने एक घंटे से भी न बदलूंगा। मालूम होता है उनकी ज़िन्दगी में कोई उत्साह ही नहीं, कोई शोक ही नहीं । जीवन क्या है, गले मे पड़ा हुआ एक ढोल है।