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नया विवाह

'दो-चार तो दे दो। इतनी मेहनत से लाया हूँ।'

'जी नहीं, इनमें से एक भी न मिलेगा।'

( ४ )

दूसरे दिन आशा ने अपने को आभूषणों से खूब सजाया और फोरोजी साड़ी पहनकर निकली तव लालाजी की आंखों में ज्योति आ गई। समझे, अवश्य हो अब उनके प्रेम का जादू 'कुछ-कुछ' चल रहा है। नहीं उनके बार-बार के आग्रह करने पर भी, बार-बार याचना करने पर भी, उसने कोई आभूषण न पहना था । कभी-कभी मोतियों का हार गले मे डाल लेती थी, वह भी ऊपरी मन से । आज वह आभूषणों से अलकृत होकर फूली नहीं समाती, इतराई जाती है, मानो कहती हो, देखो, मैं कितनी सुन्दर हूँ !

पहले जो बन्द कली थी, वह आज खिल गई थी।

लालाजी पर घड़ी का नशा चढ़ा हुआ था। वे चाहते थे, उनके मित्र ओर वन्धु- वर्ग आकर इस सोने की रानी के दर्शनों से अपनी आँखे ठंडी करें। देखें कि वह कितनी सुखी, संतुष्ट और प्रसन्न है। जिन विद्रोहियों ने विवाह के समय तरह-तरह की शंकाएँ की थीं, वे आँखें खोलकर देखें कि डगामल कितना सुखी है। विश्वास, अनुराग और अनुभव ने क्या चमत्कार किया है।

उन्होंने प्रस्ताव किया--चलो कहीं घूम आयें। बड़ी मजेदार हवा चल रही है।

आशा इस वक्त कैसे जा सकती थी ? अभी उसे रसोई में जाना था। वहाँ से कहीं बारह-एक बजे फुर्सत मिलेगी। फिर घर के दूसरे धन्धे सिर पर 'सवार' हो जायेंगे। सैर-सपाटे के पीछे क्या घर चौपट कर दे ?

सेठजी ने उसका हाथ पकड़ लिया, कहा-नहीं, आज मैं तुम्हें रसोई में न जाने दूंँगा

महाराज के किये कुछ न होगा।'

'तो आज उसकी शामत भी आ जायगी।'

आशा के मुख पर से वह प्रफुलता जाती रही। मन भी उदास हो गया। एक सोफा पर लेटकर बोली-आज न-जाने क्यों कलेजे में मीठा-मीठा दर्द हो रहा है। ऐसा दर्द कभी नहीं होता था।

सेठजी घबरा उठे।