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खुदाई फौजदार

सेठजी ने लापरवाही दिखाकर कहा--अजी, ऐसी चिट्ठियां आती ही रहती हैं, इनकी कौन परवाह करता है। मेरे पास तो तीन खत आ चुके हैं, मैंने किसी से ज़िक्र भी नहीं किया।

कान्सटेबिल हंसा-दारोगाजी को खबर मिली थी।

'सच ।

'हाँ साहब । रत्तो-रतो खबर मिलती रहती है। यहाँ तक मालूम हुआ है कि कल आपके मकान पर उनका धावा होनेवाला है। जभी तो आज दारोराजी ने मुझे आपको खिदमत मे भेजा।'

'मगर वहाँ कैसे खबर पहुंची ? मैंने तो किसीसे कहा ही नहीं।'

कान्सटेविल ने रहस्यमय भाव से कहा- हुजूर, यह न पूछें । इलाके के सबसे बड़े सेठ के पास ऐसे खत आयें और पुलिस को खबर न हो ! भला कोई बात है। फिर ऊपर से बराबर ताकीद आती रहती है कि सेठजी को शिकायत का कोई मौका न दिया जाय । सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब की खास ताकीद है आपके लिए। और हुजूर, सरकार भी तो आप ही के बूते पर चलती है । सेठ-साहूकारों के जान-माल की हिफा- ज़त न करे, तो रहे कहाँ है हमारे होते मजाल है कि कोई आपकी तरफ तिर्छी आँखों से देख सके , मगर यह कम्वख्त डाकू इतने दिलेर और तादाद में इतने ज्यादा हैं कि थाने के बाहर उनसे मुकाबिला करना मुश्किल है। दारोगजी गारद मॅगाने की बात सोच रहे थे , मगर ये हत्यारे कहीं एक जगह तो रहते नहीं, आज यहाँ हैं, तो कल यहाँ से दो सौ कोस पर । गारद मँगाकर ही क्या किया जाय ? इलाके की रिआया की तो हमे ज्यादा फिक्र नहीं, हुजूर मालिक हैं, आपसे क्या छिपाय, किसके पास रखा है इतना माल-असबाब ! और अगर किसी के पास दो-चार सौ की पूंजी निकल ही आई, तो उसके लिए पुलिस डाकुओं के पीछे अपनी जान हथेली पर लिये न फिरेगी । उन्हे क्या, वह तो छूटते ही गोली चलाते हैं, और अकसर छिपकर । हमारे लिए तो हज़ार बन्दिशे हैं। कोई बात बिगड़ जाय तो उलटे अपनी ही जान'आफत मे फँस जाय । हमे तो ऐसे रास्ते चलना है कि साँप मरे और लाठी न टूटे, इसलिए दारोगाजी ने आपसे यह अर्ज करने को कहा है कि आपके पास जोखिम की जो चीज़ हो, उन्हे लाकर सरकारी खजाने में जमा कर दीजिए। आपको उसकी रसीद दे दी जायगी। ताला और मुहर आप ही की रहेगी। जब यह हङ्गामा ठण्डा हो जाय तो‌