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नया विवाह

मैं दिल्लगी नहीं कर रहा हूँ। इसमे दिलमो को क्या बात है ! वे हैं कमसिन, कोमलागी, आप ठहरे पुराने लठैत, दंगल के पहलवान । वस ! अगर यह वात न निकले तो मूंछे मुड़ा लूँ ।'

सेठजी की आँखें जगमगा उठी। मन में यौवन की भावना प्रबल हो उठी और उसके साथ ही मुख पर भी यौवन को झलक आ गई। छाती जैसे कुछ फैल गई । चलते समय उनके पग कुछ अधिक मजबूती से जमीन पर पड़ने लगे, और सिर की टोपी भी न-जाने कैसे बाकी हो गई। आकृति से बांकेपन को शान बरसने लगी।

( ५ )

जुगल ने आशा को सिर से पाँव तक जगमगाते देखकर कहा-~वस बहूजो, आप इसी तरह पहने-ओढे रहा करें । आज मैं आपको चूल्हे के पास न आने दूंगा।

आशा ने नयन-वाण चलाकर कहा-क्यों, आज यह नया हुक्म क्यों ? पहले तो तुमने कभी मना नहीं किया।

'आज की बात दूसरी है।'

'जरा सुनें, क्या बात है।'

'मैं डरता हूँ, आप कहीं नाराज़ न हो जायें।'

'नहीं नहीं कहो, मैं नाराज न होऊँगी।'

'आज आप बहुत सुन्दर लग रही हैं।'

लाला डगामल ने असंख्य वार आशा के रुप और यौवन की प्रशंसा की थी। मगर उनको प्रशंशा मे उसे बनावट को गन्ध आती थी। वह शब्द उनके मुख से निकलकर कुछ ऐसे लगते थे, जैसे कोई पगु दौड़ने की चेष्टा कर रहा हो। जुगल के इन सीधे शब्दों में एक उन्माद था, नशा थी, एक चोट थी ! आशा की सारी देह प्रकम्पित हो गई।

'तुम मुझे नजर लगा दोगे जुगल । इस तरह क्यों घूरते हो?'

'जब यहाँ से चला जाऊँगा तब आपको बहुत याद आयेगी।'

'रसोई पकाकर तुम सारे दिन क्या किया करते हो ! दिखाई नहीं देते।'

'सरकार कहते हैं, इसी लिए नहीं आता। फिर अब तो मुझे जवाब मिल रहा है। देखिए भगवान् कहाँ ले जाते हैं।'

आशा की मुख-मुद्रा कठोर हो गई। उसने कहा- कौन तुम्हें जवाब देता है ?