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मानसरोवर

'सरकार ही तो कहते हैं, तुझे निकाल दूंगा।'

'अपना काम किये जाओ। कोई नहीं निकालेगा । अव तो तुम फुलके भी अच्छे बनाने लगे।'

'सरकार है बड़े गुस्सेवर।'

'दो-चार दिन में उनका मिजाज़ ठीक किये देती हूँ।'

'आपके साथ चलते हैं तो आपके वाप-से लगते हैं।'

'तुम बड़े मुँहफुट हो । खबरदार, जबान सँभालकर बातें किया करो।'

किन्तु अप्रसन्नता का यह झीना आवरण उसके मनोरहस्य को न छिपा सका। वह प्रकाश की भांति उसके अन्दर से निकला पड़ता था ।

जुगल ने फिर उसी निर्भीकता से कहा-मेरा मुंह कोई बन्द कर ले । यहाँ तो सभी यही कहते हैं। मेरा ब्याह कोई ५० साल की बुढिया से कर दे तो मैं तो घर छोड़कर भाग जाऊँ। या तो खुद जहर खा लूं, या उसे जहर देकर मार डालें। फांसी ही तो होगी।

आशा उस कृत्रिम क्रोध को कायम न रख सकी। जुगल ने उसकी हृदय-वीणा के तारों पर मिजराव की ऐसी चोट मारी थी कि उसके बहुत ज़ब्त करने पर भी मन की व्यथा बाहर निकल आई। उसने कहा -भाग्य भी तो कोई वस्तु है।

'ऐसा भाग्य जाय भाड़ मे।'

'तुम्हारा ब्याह किसी बुढिया से ही करूँगी। देख लेना।'

'तो मैं भी जहर खा लूंगा। देख लीजिएगा।'

'क्यों, बुढिया तुम्हे जवान स्त्री से ज्यादा प्यार करेगी, ज्यादा सेवा करेगी। तुम्हें सोधे रास्ते पर रखेगी।'

यह सब मां का काम है। बीबी जिस काम के लिए है, उसी काम के लिए है।'

'आखिर बीबी किस काम के लिए है?'

मोटर की आवाज आई। न-जाने कैसे आशा के सिर का अञ्चल खिसककर कंधे पर आ गया था। उसने जल्दी से अंचल सिर पर खींचकर कर लिया और यह कहती हुई अपने कमरे की ओर लपकी । लाला भोजन करके चले जाय तव आना।


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