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मानसरोवर


मकान किसी दूसरे का है, उन्होंने यह कोठरी केराये पर ली होगी। देखती हूँ चूल्हा ठढा पड़ा हुआ है, मालूम होता है रात को बाजार में पूरियाँ खाकर सो रहे होंगे। यही उनके सोने की खाट है । एक किनारे घड़ा रखा हुआ था । गौरा का मारे प्यास के ताल सूख रहा था । घड़े से पानी उँडे़लकर पिया । एक किनारे एक झाडू रखा हुआ था। गौरा रास्ते की थकी थी, पर प्रेमोल्लास में थकन कहाँ ? उसने कोठरी में झाड़ू लगाया, बरतनो को धो-धोकर एक जगह रखा । कोठरी को एक-एक वस्तु यहां तक कि उसकी फर्श और दीवारों में उसे आत्मीयता की झलक दिखाई देती थी। उस घर में भी, जहाँ उसने अपने जीवन के २५ वर्ष काटे थे, उसे अधिकार का ऐसा गौरव- युक्त आनन्द न प्राप्त हुआ था।

मगर उसे कोठरी में बैठे बैठे उसे सन्ध्या हो गई और मॅगरू का कहीं पता नहीं। अब छुट्टी मिली होगी। सांझ को सब जगह छुट्टी होती है । अब वह आ रहे होंगे। मगर बूढे बाबा ने उनसे कह तो दिया ही होगा, क्या वह अपने साहब से थोड़ी देर की छुट्टी न ले सकते थे ? कोई बात होगी, तभी तो नहीं आये।

अँधेरा हो गया । कोठरी मे दीपक न था। गौरा द्वार पर खड़ी पति की वाट देख रही थी। जीने पर बहुत-से आदमियों के चढने उतरने की आहट मिलती थी। बार-बार गौरा को मालूम होता था कि वह आ रहे हैं, पर इधर कोई न आता था ।

९ बजे बुढे बाबा आये । गौरा ने समझा मँगरू है। झपटकर कोठरी के बाहर निकल आई। देखा तो ब्राह्मण ! बोली-वह कहां रह गये ?

बूढा-उनकी तो यहाँ से बदली हो गई। दफ्तर में गया था तो मालूम हुआ कि वह कल अपने साहब के साथ यहां से कोई आठ दिन की राह पर चले गये। उन्होने साहब से बहुत हाथ-पैर जोड़े कि मुझे १० दिन की मुहलत दे दीजिए, लेकिन साहब एक न मानी । मॅगरू यहां लोगों से कह गये हैं कि घर के लोग आये तो -मेरे पास भेज देना । अपना पता दे गये हैं। कल मैं तुम्हें यहां से जहाज़ पर बैठा दूंगा। उस जहाज़ पर हमारे देश के और भी बहुत-से आदमी होंगे, इसलिए मार्ग में कोई कष्ट न होगा।

गौरा ने पूछा- कै दिन में जहाज़ पहुंँचेगा ?

बूढा-आठ-दस दिन से कम न लगेंगे, मगर घबराने की कोई बात नहीं । तुम्हें किसी बात की तकलीफ न होगी।