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मानसरोवर


मॅगवा लीजिएगा। इससे आपको भी बेफिक्री हो जायगो ओर हम भी जिम्मेदारी से बच जायेंगे। नहीं, खुदा न करें, कोई वारदात हो जाय, तो हुजूर का तो जो नुकसान हो वह तो हो ही, हमारे ऊपर भी जवाबदेही आ जाय। और यह ज़ालिम सिर्फ माल-असबाब लेकर ही तो जान नहीं छोड़ते-खून करते हैं, घर में आग लगा देते हैं, यहां तक कि औरतों की बेइज्जती भी करते हैं। हुजूर तो जानते हैं, होता है वही जो तकदीर मे लिखा है। आप इकबालवाले आदमी हैं, डाकू आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते । सारा कस्बा आपके लिए जान देने को तैयार है। आपका पूजा-पाठ, धर्म-कर्म खुदा खुद देख रहा है। यह इसी की बरकत है कि आप मिट्टी भी छू लें, तो सोना हो जाय , लेकिन आदमी भरसक अपनी हिफाज़त करता है। हुजूर के पास मोटर है ही, जो कुछ रखना हो उस पर रख दीजिए । हम चार आदमी आपके साथ हैं ही, कोई खटका नहीं। वहाँ एक मिनट में आपको फुरसत हो जायगी। पता चला है कि इस गोल मे बीस जवान हैं। दो तो बैरागी बने हुए हैं, दो पजावियो के भेष मे धुस्से और अलवान बेचते फिरते हैं। इन दोनो के साथ दो बहँगीवाले भी है। दो आदमी बलूचियों के भेष मे छूरियाँ और ताले वेचते हैं। कहां तक गिनाऊँ हुजूर । हमारे थाने मे तो हर एक का हुलिया रखा हुआ है।

खतरे मे आदमी का दिल कमजोर हो जाता है और वह ऐसी बातो पर विश्वास कर लेता है, जिन पर शायद होश-हवास मे न करता ! जब किसी दवा से रोगी को लाभ नहीं होता, तो हम दुआ, तावीज, ओझो और सयानो की शरण लेते है, और यहाँ तो सन्देह करने का कोई कारण ही न था । सम्भव है, दारोगाजी का कुछ स्वार्थ हो , मगर सेठजी इसके लिए तैयार थे, अगर दो चार सौ भल खाने पडें तो कोई बड़ी बात नहीं। ऐसे अवसर तो जीवन मे आते ही रहते हैं और इस परिस्थिति में इससे अच्छा दुसरा क्या इन्तज़ाम हो सकता था , बल्कि इसे तो ईश्वरीय प्रेरणा सम- झना चाहिए । माना, उनके पास दो-दो बन्दूकें हैं, कुछ लोग मदद करने के लिए निकल ही आयेंगे, लेकिन है जान-जोखिम । उन्होने निश्चय किया, दारोगाजी की इस कृपा से लाभ उठाना चाहिए । इन्हीं आदमियो को कुछ दे-दिलाकर सारी चीजें निक- लवा लेंगे। दूसरों का क्या भरोसा ? कहीं कोई चीज उड़ा दे तो बस।

उन्होंने इस भाव से कहा, मानो दारोगाजी ने उन पर कोई विशेष कृपा नहीं की है-वह तो उनका कर्तव्य ही था--मैंने यहां ऐसा प्रबंध किया था कि यहां वह सब‌