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मानसरोवर


जी में आया चिल्लाऊँ, पर यह सोचकर कि अब अगर गाड़ी रुक भी गई, और मैं उतर भी पड़ी तो घर में घुसने न पाऊँगी, मैं चुपचाप बैठी रह गई। मैं परमात्मा की दृष्टि में निर्दोष थी, पर संसार की दृष्टि में तो कलकित हो चुकी थी। रात को किसी युवती का घर से निकल जाना कलक्ति करने के लिए काफी था। जब मुझे मालूम हो गया कि सब मुझे मिर्च के टापू में भेज रहे है तो मैंने जरा भी आपत्ति नहीं की। मेरे लिए अब सारा संसार एक-सा है। जिसका संसार में कोई न हो, उसके लिए देश-परदेश दोनो बराबर हैं । हाँ, यह पक्का निश्चय कर चुकी हूँ कि भरते दम तक अपने सत की रक्षा करूंगी। विधि के हाथ में मृत्यु से बढकर कोई यातना नहीं । विधवा के लिए मृत्यु का क्या भय । उसका तो जीना और मरना दोनों बराबर है। बल्कि मर जाने से जीवन की विपत्तियों का तो अन्त हो जायगा ।

गौरा ने सोचा, इस स्त्री में कितना धैर्य और साहस है। फिर मैं क्यों इतनी कातर और निराश हो रही हूँ। जब जीवन की अभिलाषाओं का अन्त हो गया तो जीवन के अन्त का क्या डर । बोली-बहन, हम और तुम एक ही जगह रहेगी। मुझे तो अब तुम्हारा ही भरोसा है।

स्त्री ने कहा- भगवान का भरोसा रखो और मरने से मत डरो।

सघन अन्धकार छाया हुआ था । उपर काला आकाश था, नीचे काला जल औरा आकाश की ओर ताक रही थी। उसको सगिनी जल की ओर। उसके सामने आकाश के कुसुम थे, इसके आगे अनन्त, अखण्ड, अपार अन्धकार था !

जहाज़ से उतरते ही एक आदमी ने यात्रियों के नाम लिखने शुरू किये। इसका पहनाव तो अग्रेजी था, पर वह बातचीत से हिन्दुस्तानी मालूम होता था। गौरा सिर झुकाये अपनी सगिनी के पीछे खड़ी थी। उस आदमी की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ी। उसने दबी आँखों से उसकी ओर देखा। उसके समस्त शरीर में सनसनी-सी दौड़ गई । क्या स्वप्न तो नहीं देख रही हूँ ? आँखों पर विश्वास न आया , फिर उस पर निगाह डाली । उसकी छाती वेग से धड़कने लगी। पैर थर-थर कांपने लगे। ऐसा मालूम होने लगा मानो चारो ओर जल-ही-जल है, और मैं उसमें बही जा रही हूँ। उसने अपनी सगिनी का हाथ पकड़ लिया, नहीं तो ज़मीन पर गिर पड़ती। उसके सम्मुख वही पुरुष खड़ा था, उसका प्राणाधार था और जिससे इस जीवन में भेंट होने की उसे लेशमात्र भी आशा न थी । यह मॅगरू था, इसमें जरा भी सन्देह न था। हाँ