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शूद्रा

सुनाई दे रही थी । मॅगरू की आवाज़ थी । वह द्वार के बाहर निकल आई। उसके सामने एक गोली के टप्पे पर एजेण्ट का बंगला था। उसी तरफ से आवाज़ आ रही- थी। कोई उन्हे मार रहा है। आदमी मार पड़ने ही पर इस तरह रोता है । मालूम होता है, वही साहब उन्हें मार रहा है। वह वहाँ खड़ी न रह सकी, पूरी शक्ति से उस बॅगले की और दौड़ी, रास्ता साफ था । एक क्षण में वह फाटक पर पहुंच गई। फाटक बन्द था। उसने जोर से फाटक पर धक्का दिया, लेकिन वह फाटक न खुला और कई बार ज़ोर-जोर से पुकारने पर भी कोई बाहर न निकला तो वह फाटक के जंगलों पर पैर रख के भीतर कूद पड़ी और उस पार जाते ही उसने एक रोमाचकारी दृश्य देखा । मॅगरू नगेवदन बरामदे मे लदा था और एक अंग्रेज उसे हण्टरों से मार रहा था। गौरा की आँखो के सामने अंधेरा छा गया। वह एक छलांग मे साह्य के सामने जाकर खड़ी हो गई और मॅगस्त को अपने अक्षय-प्रेम-सवल हाथों से ढककर बोली- सरकार, दया करो, इनके बदले मुझे जितना चाही मार लणे, पर इनको छोड़ दो।

एजेण्ट ने हाथ रोक लिया ओर उन्मत्त को भौति गौरा की ओर कई कदम आकर वोला-हम इसको छोड़ दे तो तुम यहाँ मेरे पास रहेगा।

मँगरु के नथने फड़कने लगे। यह पासर, नीच अब मेरी पत्नी से इस तरह की बात कर रहा है । अब तक वह जिस अमूल्य रत्न की रक्षा के लिए इतनी यातनाएँ सह रहा था, वही वस्तु साहब को हाथ मे चली जा रही है, यह असह्य था। उसने चाहा कि लपककर साहब की गरदन पर चढ़ बैठूँ, जो कुछ होना है हो जाय, यह अपमान सहने के बाद जीकर हो क्या कसँगा? लेकिन नब्बी ने उसे तुरन्त पकड़ लिया और कई आदमियों को बुलाकर उसके हाथ-पांच बांध दिये। मॅगरू भूमि पर छटपटाने लगा।।

गौरा रोती हुई साहब के पैरों पर गिर पड़ी और बोली-हजूर, इन्हें छोड़ दें, मुक पर दया करें।

एजेण्ट-~तुम हमारे पास रहेगा?

गौरा ने खून का चूंट पीकर कहा-हाँ रहूँगी।

( ९ )

बाहर मॅगरू बरामदे में पड़ा कराह रहा था। उसकी देह में सूजन थी और घावों