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खुदाई फौजदार


आते तो उनके दांत खट्ट कर दिये जाते, सारा कस्बा मदद के लिए तैयार था। सभी से तो अपना मित्र-भाव है, लेकिन दारोगाजी की तजबीज मुझे पसन्द है। इससे वह भी अपनो जिम्मेदारी से बरी हो जाते हैं और मेरे सिर से भी फिक्र का बोझ उतर जाता है, लेकिन भीतर से चीजें बाहर निकाल-निकालकर लाना मेरे बूते की बात नहीं। आप लोगो की दुआ से नौकर-चाकरों को तो कमी नहीं है, मगर किसी की नीयत कैसी है, कौन जान सकता है ? आप लोग कुछ मदद करें तो काम आसान हो जाय।

हेड कांस्टेबिल ने बड़ी खुशी से यह सेवा स्वीकार कर ली और बोला— हम सब हुजूर के ताबेदार हैं, इसमे मदद को कौन बात है ? तलब सरकार से पाते हैं, यह ठीक है, मगर देनेवाले तो आप ही हैं। आप केवल सामान हमे दिखाते जायें, इस बात को-बात मे सारी चीजें निकाल लायेंगे। हुजूर की खिदमत करेंगे तो कुछ- इनाम-इकराम मिलेगा ही । तनख्वाह मे गुज़र नहीं होता सेठजी, आप लोगो की करम की निगाह न हो, तो एक दिन भी निवाह न हो । बाल-बच्चे भूखों मर जाय । पन्द्रह- बीस रुपया मे क्या होता है हुजूर, इतना तो हमारे लिए ही पूरा नहीं पड़ता।

सेठजी ने अन्दर जाकर केसर से यह समाचार कहा तो उसे जैसे आँख मिल गई। बोली-भगवान् ने सहायता की, नहीं मेरे प्राण बड़े सकट में पड़े हुए थे।

सेठजी ने सर्वज्ञता के भाव से फरमाया- इसी को कहते हैं सरकार का इन्तज़ाम ! इसी मुस्तैदी के बल पर सरकार का राज थमा हुआ है । कैसी सुव्यवस्था है कि जरा- सी कोई बात हो, वहाँ तक खबर पहुँच जाती है और तुरन्त उसके रोक-थाम का हुक्म हो जाता है । और यहाँवाले ऐसे बुद्धू है कि स्वराज्य-स्वराज्य चिल्ला रहे हैं। इनके हाथ में अख्तियार आ जाय तो दिन-दोपहर लूट मच जाय, कोई किसीकी न सुने । ऊपर से ताकीद आई है। हाक्मिो का आदर-सत्कार कभी निष्फल नहीं जाता। मैं तो सोचता हूँ, कोई बहुमूल्य वस्तु घर मे न छोड़ूं। साले आयें तो अपना-सा मुंँह लेकर रह जायें।

केसर ने मन-ही-मन प्रसन्न होकर कहा--कुञ्जी उनके सामने फेक देना कि जो चीज़ चाहो, निकाल ले जाओ।।

'साले मेंप जायेंगे।

मुंँह मे कालिरा लग जायगी ।,