पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/३२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३३५
शूद्रा


पर तरस नहीं आती। क्या वह दया की देवी तुम्हारी बेदरदी देखकर दुखी न होती होंगी । उनकी कोई तसवीर तुम्हारे पास है ?

साहब -ओ, हमारे पास उनके कई फोटो हैं। देखो, वह उन्हींको तसवीर है, वह दीवाल पर!

गौरा ने समीप जाकर तसवीर देखी और आकर करुण-स्वर में बोलो-सचमुच देवी थीं, जान पड़ता है दया की देवी हैं। वह तुम्हें कभी मारती थी कि नहीं ? मैं तो जानती हूँ वह कभी किसी पर न विगढ़ती रही होगी। बिलकुल दया की मूर्ति हैं।

साहब--ओ, मामा हमको कभी नहीं मारता था । वह बहुत गरीब था, पर अपनी कमाई में कुछ-न-कुछ जरूर खैरात करता था। किसी बे-बाप के चालक को देखकर उसकी आँखों में आंसू भर आता था। वह बहुत ही दयावान था ।

गौरा ने तिरस्कार के स्वर में कहा-और उसी देवी के पुत्र होकर तुम इतने निर्दयी हो । क्या वह होती तो तुम्हे किसी को इस तरह हत्यारों को भौति मारने देती ? वह सरग मे रो रही होंगी। सरग-नरक तो तुम्हारे यहां भी होगा। ऐसी देवी कैसे हो गये।

गौरा को ये बातें कहते हुए ज़रा भी भय न होता था । उसने अपने मन में एक दृढ़ सकल्प कर लिया था और अब उसे किसी प्रकार का भय न था । जान से हाथ धो लेने का निश्चय कर लेने के बाद भय को छाया भी नहीं रह जाती, किन्तु वह हृदय- शून्य अंग्रेज इन तिरस्कारों पर आग हो जाने के बदले और भी नम्र होता था। गौरा मानवी भावों से कितनी ही अनभिज्ञ हो, पर इतना जानती थी कि अपनी जननी के लिए प्रत्येक हृदय मे, चाहे वह साधु का हो या कसाई का, आदर और प्रेम का एक कोना सुरक्षित रहता है। ऐसा भी कोई अभागा प्राणी है, जिसे मातृ-स्नेह की स्मृति थोड़ी देर के लिए रुला न देती हो, उसके हृदय के कोमल भाव को जगा न देती हो ?

साहब की आँखें डबडबा गई थीं । सिर झुकाये बैठा रहा। गौरा ने फिर उसी ध्वनि में कहा-तुमने उनकी सारी तपस्या धूल में मिला दी। जिस देवी ने मर- मरकर तुम्हारा पालन किया, उसीको मरने के पीहे तुम इतना कष्ट दे रहे हो? क्या इसीलिए माता अपने पुत्र को अपना रक्त पिला-पिलाकर पालती है ? अगर वह बोल सकतीं तो क्या चुप बैठी रहती, तुम्हारे हाथ पकड़ सकती तो न पकड़ती ? मैं तो समझती हूँ, वह जीती होती तो इस वा विष खाकर मर जाती।