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मानसरोवर

साहब अब जब्त न कर सके। नशे में क्रोध की भांति ग्लानि का वेगभी ही में उठ आता है। दोनों हाथों से मुँह छिपाकर साहब ने रोना शुरू किया,इतना रोया कि हिचकी बंध गई । माता के चित्र के सम्मुख जाकर वह कुछ देर खड़ा रहा, मानो माता से क्षमा मांग रहा हो। तब आकर आर्द्र-कण्ठ से हमारे मामा को अब कैसे शान्ति मिलेगा । हाय-हाय ! हमारे सबब से उसको में भी सुख नहीं मिला । हम कितना अभागा है!

गौरा-सभी जरा देर में तुम्हारा मन बदल जायगा और तुम फिर दूसरों यही अत्याचार करने लगोगे।

साहब --- नई, नई, अब हम मामा को कभी दुख नहीं देगा। हम अभी को अस्पताल भेजता है।

( १० )

रात ही को मँगरू अस्पताल पहुंचा दिया गया। एजेण्ट खुद उसको पहुंचा आया। गौरा भी उसके साथ थी । मैंगरू को ज्वर हो आया था, बेहोश पड़ा हुआ

मँगरू ने तीन दिन आखें न खोली और गौरा तीनों दिन उसके पास बैठो ,एक क्षण के लिए भी वहाँ से न हटी। एजेण्ट भी कई बार हाल-चाल पूछने जाता और हर मरतबा गौरा से क्षमा मांगता ।

चौथे दिन मॅगरू ने आँखें खोली तो देखा गौरा सामने बैठी हुई है । गौरा आखें खोलते देखकर पास आ खड़ी हुई और बोली-अव कैसा जी है ?

मॅगरू ने कहा---तुम यहाँ कब आई ?

गौरा-मैं तो तुम्हारे साथ ही यहाँ आई थी, तब से यहीं हूँ।

मॅगरू-साहब के बंगले मे क्या जगह नहीं है ?

गौरा-अगर बॅगले की चाह होती तो सात समुद्र पार तुम्हारे पास क्यों -

मॅगरू. आकर कौन-सा सुख दे दिया है। तुम्हें यही करना था तो मुझे क्यों न जाने दिया ?

गौरा ने झुंझलाकर कहा-तुम इस तरह की बातें मुझसे न करों । ऐसी से मेरी देह में आग लग जाती है।

मंगरू ने मुँह फेर लिया, मानो उसे गौरा की बात पर विश्वास नहीं आया

दिन-भर गौरा मॅगरू के पास बे दाना-पानी खड़ी रही । गोरा ने कई बार