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मानसरोवर

एक बार दिल मजबूत करके तोड़ क्यों नहीं देते? सब उठाकर गरीबों को बाँट दीजिए । साधु-सन्तों को नहीं, न मोटे ब्राह्मणों को वल्कि उनको, जिनके लिए यह ज़िन्दगी बोझ हो रही है, जिनकी यही एक आरजू है कि मौत आकर उनकी विपत्ति का अन्त कर दे।'

'इस मायाजाल को तोड़ना आदमी का काम नहीं है खाँ साहब । भगवान् की इच्छा होती है, तभी मन में वैराग आता है।'

'आज भगवान् ने आपके ऊपर दया की है। हम इस मायाजाल को मकड़ी के जाले की तरह तोड़कर आपको आजाद करने के लिए भेजे गये हैं। भगवान आपकी भक्ति से प्रसन्न हो गये हैं और आपको इस बन्धन में नहीं रखना चाहते, जीवन-मुक्त कर देना चाहते हैं।'

'ऐसी भगवान् की दया हो जाती, तो क्या पूछना खाँ साहब ।'

'भगवान् की ऐसी ही दया है सेठजी, विश्वास मानिए । हमे इसी लिए उन्होंने मृत्युलोक मे तैनात किया है। हम कितने ही मायाजाल के कैदियों की बेड़ियाँ काट चुके हैं । आज आपकी वारी है।'

सेठजी की नाड़ियों मे जैसे रक्त का प्रवाह बन्द हो गया। सहमी हुई आँखों से सिपाहियों को देखा । फिर बोले- आप बड़े हँसोड़ हो खाँ साहब ।

'हमारे जीवन का सिद्धान्त है कि किसी को कष्ट मत दो , लेकिन ये रुपयेवाले कुछ ऐसी औंधी खोपड़ी के लोग हैं कि जो उनका उद्धार करने आता है, उसी के दुश्मन हो जाते हैं। हम आपको बेड़ियाँ काटने आये है, लेकिन अगर आपसे कहें कि यह सब जमा जथा और लता-पता छोड़कर घर की राह लोजिए, तो आप चीखना- चिल्लाना शुरू कर देंगे। हम लोग वही खुदाई फौजदार हैं, जिनके इत्तलाई खत आपके पास पहुंच चुके हैं !'

सेठजी मानो आकाश से पाताल में गिर पड़े। सारी ज्ञानेन्द्रियों ने जवाब दे दिया। और इसी मूर्छा की दशा मे वह मोटरकार से नीचे ढकेल दिये गये और गाड़ी चल पड़ी।

सेठजी की चेष्टा जाग पड़ी। बदहास गाड़ी के पोछे दौड़े-हुजूर, सरकार, तबाह हो जायेंगे, दया कीजिए, घर मे एक कौड़ी भी नहीं है......