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मानसरोवर


बला से ! तुम तो अपने सैर-सपाटे करते रहे । छः महीने के बाद जब आपकी याद आई है, तो पूछते हो बीमार हो ? मैं उस रोग में ग्रस्त हूँ, जो प्राण लेकर हो छोड़ता है । तुमने इन महाशय की हालत देखी ? उनका यह रङ्ग देखकर मेरे दिल पर क्या गुज़रती है, यह क्या मैं अपने मुंह से कहूँ तभी समझोगे ? मैं अब इसाघर में ज़बर- दस्ती पड़ी हूँ और बेहयाई से जीती हूँ। किसी को मेरी चाह या चिन्ता नहीं है। पापा क्या मरे, मेरा सोहाग ही उठ गया। कुछ समझाती हूँ, तो बेवकूफ बनाई जाती हूँ। रात-रात-भर न जाने कहाँ गायब रहते हैं । जब देखो, नशे में मस्त । हफ्तों घर में नहीं आते कि दो बातें तो कर लूँ , अगर इनके यही ढङ्ग रहे, तो साल-दो साल में रोटियों को मुहताज हो जायेंगे।

दया ने पूछा-यह लत इन्हें कैसे पड़ गई ? यह बातें तो इनमें न थीं।

लीला ने व्यथित स्वर में कहा-रुपये की बलिहारी है, और क्या , इसीलिए तो बूढ़े मर-मरके कमाते हैं और मरने के बाद लड़कों के लिए छोड़ जाते हैं। अपने मन में समझते होगे, हम लड़कों के लिए बैठने का ठिकाना किये जाते है । मैं कहती ' हूँ, तुम उनके सर्वनाश का सामान किये जाते हो , उनके लिए जहर बोये जाते हो। पापा ने लाखों रुपये की सम्पत्ति न छोड़ी होती, तो आज यह महाशय किसी काम में लगे होते, कुछ घर की चिन्ता होती, कुछ ज़िम्मेदारी होती । नहीं तो बैंक से रुपये निकाले और उड़ाये । अगर मुझे विश्वास होता कि सम्पत्ति समाप्त करके वह सीधे मार्ग पर आ जायेंगे, तो मुझे ज़रा भी दु.ख न होता; पर मुझे तो यह भय है कि ऐसे लोग फिर किसी काम के नहीं रहते। या तो जेलखाने में मरते हैं, या अनाथालय में। आपकी एक वेश्या से आशनाई है। माधुरी नाम है, और वह इन्हें उल्टे छुरे से मूंँड़ रही है, जैसा उसका धर्म है। आपको यह खब्त हो गया है कि वह मुझ पर जान देती है । उससे विवाह का प्रस्ताव भी किया जा चुका है। मालूम नहीं," उसने क्या जवाब दिया। कई बार जी में आया कि जब यहां किसी से कोई नाता ही नही है, तो अपने घर चली जाऊँ। लेकिन डरती हूँ कि तब तो यह और भी स्वतन्त्र हो जायेंगे । मुझे किसी पर विश्वास है, तो वह तुम हो , इसीलिए तुम्हें बुलाया था, कि शायद तुम्हारे समझाने-बुझाने का कुछ असर हो ; अगर तुम भी असफल हुए, तो मैं एक क्षण यहाँ न रहूंगी। भोजन तैयार है, चलो कुछ खा लो।

दयाकृष्ण ने सिगारसिह की और सकेत करके कहा-और यह ?