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मानसरोवर


हाथ थे लीला की कमर में। दोनों के मुख पर हर्ष की लाली थी, आँखों में हर्ष के आँसू और मन में एक ऐसा तूफान, जो उन्हे न जाने कहाँ उड़ा ले जायगा।

एक क्षण के बाद सिंगार ने कहा--तुमने कुछ सुना, माधुरी भाग गई और पगला दयाकृष्ण उसकी खोज में निकला है।

लीला को विश्वास न आया- दयाकृष्ण ?

'हाँ जी, जिस दिन वह भागी है, उसके दूसरे ही दिन वह भी चल दिया।'

'वह तो ऐसा आदमी नहीं है। और माधुरी क्यो भागी ?'

'दोनों से प्रेम हो गया था। माधुरी उसके साथ रहना चाहती थी। बह राजी न हुआ।'

लीला ने एक लम्बी साँस ली। दयाकृष्ण के वह शब्द याद आये, जो उसने कई महीने पहले कहे थे। दयाकृष्ण की वह याचना-भरी आँखें उसके मन को मसोसने लगीं।

सहसा किसी ने बड़े जोर से द्वार खोला और धड़धड़ाता हुआ भीतरवाले कमरे के द्वार पर आ गया।

सिंगार ने चकित होकर कहा-अरे ! तुरहारी यह क्या हालत है कृष्णा ! किधर से आ रहे हो ?

दयाकृष्ण को आँखें लाल थीं, सिर और मुंह पर गर्द जमी हुई, चेहरे पर धव- राहट, जैसे कोई दीवाना हो।

उसने चिल्लाकर कहा-तुमने सुना, माधुरी इस ससार मे नहीं रही ।

और दोनों हाथो से सिर पीट-पीटकर रोने लगा, मानो हृदय को और प्राणों को आँखों से बहा देगा।



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