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चमत्कार

अजी, तुम दरख्वास्त तो दो; अगर सारी बातें तय हो जायँ, तो जमानत भी दे दी जायगी । इसको चिन्ता न करो।'

प्रकाश ने स्तम्भित होकर कहा-आप जमानत दे देंगे ?

'हा-हा, यह कौन-सी बड़ी बात है।'

प्रकास घर चला तो बहुत रजोदा था। उसको यह जगह अब अवश्य मिलेगी , लेकिन फिर भी वह प्रसन्न नहीं है । ठाकुर माहव की सरलता- उनका उस पर इतना अटल विश्वास-उसे आहत कर रहा है। उनकी शराफत उसके कसीनेपन को कुचले डालती है।

उसने घर आकर चरा को खुशखबरी सुनाई। चम्पा ने सुनकर मुंह फेर लिया । एक क्षण के बाद बोली-ठाकुर साहब से तुमने क्यो जमानत दिलवाई। प्रकाश ने चिढकर कहा -- फिर और किससे दिलवाता ?

'यही न होता. जगह न मिलती। रोटियाँ तो मिल ही जातीं । रुपये-पैसे की बात है । वहीं भूल-चूक हो जाय, तो तुम्हारे साथ उनके रुपये भी जायँ।'

'यह तुम कसे समझती हो कि भूल-चूक होगी ? क्या में ऐसा अनाङी हूँ?'

चम्पा ने विरक्त मन से कहा--आदमी की नीयत भी तो हमेशा एक-सी नहीं रहती।

प्रकाश ठक-से रह गया। उसने चम्स को चुभतो हुई आंखों से देखा , पर चम्पा ने मुंह फेर लिया था। वह उसके भावों के विषय मे कुछ निश्चय न कर सका , लेकिन ऐसी खुशखबरी सुनकर भी चम्पा का उदासीन रहना उसे विकल करने लगा। उसके मन में प्रश्न उठा-एस वाक्य में नहीं आक्षेप तो नहीं छिपा हुआ है। चम्पा ने सन्दूक खोलकर देख तो नहीं लिया ? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए इस समय यह अपनी एक आँख भी भेंट कर सकता था।

भोजन करते समय प्रकाश ने चम्पा से पूछा---तुमने क्या सोचकर कहा था कि आदमी को नीयत तो हमेशा एक-सी नहीं रहती ? जैसे यह उसके जीवन या मृत्यु का प्रश्न हो।

चम्पा संकट में पड़कर कहा-कुछ नहीं, मैंने दुनिया की बात कही थी। प्रकाश को संतोष न हुआ।