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मानसरोवर

‘घर चलिए, चित्त शान्त हो तो सुनाऊँ ।'

‘बाल बच्चे तो अच्छी तरह हैं ?’

‘हाँ, सब अच्छी तरह हैं। वैसी कोई बात नहीं है।’

‘तो चलिए, रेस्ट्राँ में कुछ जलपान तो कर लीजिए ।’

‘नहीं भाई, इस वक्त मुझे जलपान नहीं सूझता।'

हम दोनों घर की ओर चले ।

घर पहुँचकर मैंने उनका हाथ-मुँह धुलाया, शरबत पिलाया । इलायची-पान खाकर उन्होंने अपनी विपत्ति-कथा सुनानी शुरू की—

'कुसुम के विवाह में तो आप गये ही थे । उसके पहले भी आपने उसे देखा था । मेरा विचार है कि किसी सरल प्रकृति के युवक को आकर्षित करने के लिए जिन गुणों की ज़रूरत है वह सब उसमें मौजूद हैं । आपका क्या खयाल है ?'

मैंने तत्परता से कहा--मैं आपसे कहीं ज्यादा कुसुम का प्रशंसक हूँ । ऐसी लज्जाशील, सुघड़, सलीकेदार और विनोदिनी बालिका मैने दूसरी नहीं देखी ।

महाशय नवीन ने करुण स्वर में कहा-- वही कुसुम आज अपने पति के निर्दय व्यवहार के कारण रो-रोकर प्राण दे रही है। उसका गौना हुए एक साल हो रहा है। इस बीच मे वह तीन बार ससुराल गई, पर उसका पति उससे बोलता ही नहीं । उसकी सूरत से बेजा़र है। मैंने बहुत चाहा कि उसे बुलाकर दोनों में सफाई करा दूंँ, मगर न आता है, न मेरे पत्रो का उत्तर देता है। न जाने ऐसी क्या गाँठ पड़ गई है कि उसने इस बेदर्दी से आँखें फेर लीं। अब सुनता हू,उसका दूसरा विवाह होनेवाला है। कुसुम का बुरा हाल हो रहा है। आप शायद उसे देखकर पहचान भी न सकें। रात-दिन रोने के सिवा दूसरा काम नहीं है। इससे आप हमारी परेशानी का अनुमान कर सकते हैं । ज़िन्दगी की सारी अभिलाषाएँ मिटी जाती हैं। हमें ईश्वर ने पुत्र न दिया; पर हम अपनी कुसुम को पाकर सतुष्ट थे और अपने भाग्य को धन्य मानते थे । उसे कितने लाड़-प्यार से पाला, कभी उसे फूल की छड़ी से भी न छुआ । उसकी शिक्षा-दीक्षा में कोई बात उठा न रखी । उसने बी० ए० नहीं पास किया; लेकिन विचारों की प्रौढ़ता और ज्ञान-विस्तार में किसी ऊँचे दर्जे की शिक्षिता महिला से कम नहीं । आपने उसके लेख देखे हैं। मेरा खयाल है, बहुत कम देवियाँ वैसे लेख लिख सकती हैं। समाज, धर्म, नीति, सभी विषयों में उसके विचार बडे परिष्कृत हैं । बहस