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मोटर की छीटे


के टुकड़े वटोर लिये और दूसरे मोटर की राह देखने लगा। ब्रह्मतेज सिर पर चढ़ बैठा। अभी दस मिनट भी न गुज़रे होगे कि एक मोटर आती हुई दिखाई दी। ओहो ! वही मोटर थी। शायद स्वामी को स्टेशन से लेकर लौट रही थी। ज्यों ही समीप आई, मैंने एक पत्थर चलाया, भरपूर जोर लगाकर चलाया। साहब की टोपी उडकर सड़क के उस बाजू पर गिरी । मोटर की चाल धीमी हुई। मैंने दूसरा फैर किया। खिड़की के शीशे चूर-चूर हो गये और एक टुकड़ा साहब बहादुर के गाल में भी लगा। खून बहने लगा। मोटर रुकी और साहब उतरकर मेरी तरफ आये और धूसा तानकर बोले-~-सुअर, हम तुमको पुलिस में देगा। इतना सुनना था कि मैंने पोथी-पत्रा ज़मीन पर फेंका और पकड़कर साहब की कमर अड़गी लगाई, तो कीचड़ मे भद से गिरे। मैंने चट सवारी गाँठो और गरदन पर एक पचीस रद्दे ताबड़तोड़ जमाये कि चौधिया गये। इतने में उनकी पत्नोजी उतर आई। ऊँची ऍडी का जूता, रेशमी साड़ी, गाली पर पाउडर, ओठो पर रग, भोवों पर स्याही, मुझे छाते से गोदने लगीं। मैंने साहब को छोड़ दिया और डण्डा सँभालता हुआ बोला-देवीजी, आप मरदों के बीच में न पड़े, कहीं चोट-चपेट आ जाय, तो मुझे दुख होगा।

साहब ने अवसर पाया, तो सँभलकर उठे और अपने बूटदार पैरो से मुझे एक ठोकर जमाई । मेरे घुटने में बड़ी चोट लगी। मैंने बौखलाकर डण्डा उठा लिया और साहब के पांव में जमा दिया । कटे पेड़ की तरह गिरे। मेम साहव छतरी तानकर दौड़ी। मैंने धीरे से उनकी छतरी छीनकर फेंक दो । ड्राइवर अभी तक बैठा था, अब वह भी उत्तरा और छड़ी लेकर मुझपर पिल पड़ा। मैंने एक डण्डा उसके भी जमाया, लोट गया। पचासौं आदमो तमाशा देखने जमा हो गये। साहब भूमि पर पड़े-पड़े बोले-रैस्केल, हम तुमको पुलिस मे देगा।

मैंने फिर डण्डा संँभाला और चाहता था, कि खोपड़ी पर जमाऊँ कि साहब ने हाथ जोड़कर कहा-नहीं-नहीं, बावा, हम पुलिस मे नहीं जायगा। माफी दो।

मैंने कहा-हाँ, लिस का नाम न लेना, नहीं तो यहीं खोपड़ी रँग दूंगा। बहुत होगा ६ महीने की सजा हो जायगी, मगर तुम्हारी आदत छुड़ा दूंगा। मोटर चलाते ही, तो छीटें उड़ाते हो, मारे घमण्ड के अन्धे हो जाते हो । सामने या बगल में कौन जा रहा है, इसका ध्यान ही नहीं रखते ।

एक दर्शक ने आलोचना को- अरे महाराज, मोटरवाले जान-बूझकर छीटें‌
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