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मानसरोवर


उड़ाते हैं और जब आदमी लथ-पथ हो जाता है, तो सब उसका तमाशा देखते हैं और खूब हँसते हैं। आपने बड़ा अच्छा किया कि एक को ठीक कर दिया।

मैंने साहब को ललकारकर कहा-सुनता है कुछ, जनता क्या कहती है ? साहब ने उस आदमी की ओर लाल-लाल आँखो से देखकर कहा-तुम झूठ बोलता है, विलकुल झूठ बोलता है।

मैंने डाँटा--अभी तुम्हारी हेकडी कम नहीं हुई, आऊँ फिर और दूं एक सोटा कसके ?

साहब ने घिघियाकर कहा-अरे नहीं बाबा, सच बोलता है, सच बोलता है। अब तो खुश हुआ ?

दूसरा दर्शक बोला-अभी जो चाहे कह दें, लेकिन ज्योंही गाड़ी पर बैठे, फिर वही हरकत शुरू कर देंगे। गाड़ी पर बैठते ही सब अपने को नवाब का नाती समझने लगते हैं ?

दूसरे महाशय बोले- इससे कहिए थूककर चाटे।

तीसरे सज्जन ने कहा-नहीं, कान पकड़कर उठाइए-बैठाइए।

चौथा बोला---और ड्राइवर को भी । यह सव और बदमाश होते हैं। मालदार आदमी धमण्ड करे, तो एक बात है, तुम किस बात पर अकड़ते हो ? चक्कर हाथ में लिया और आँखों पर परदा पड़ा ।

मैंने यह प्रस्ताव स्वीकार किया। डाइवर और मालिक दोनों ही को कान पकड़कर उठाना-बैठाना चाहिए और मेम साहब गिनें । सुनो मेम साहब, तुमको गिनना होगा। पूरी सौ बैठकें । एक भी कम नहीं, ज्यादा जितनी चाहे हो जायें ।

दो आदमियों ने साहब का हाथ पकड़कर उठाया, दो ने ड्राइवर महोदय का। डाइवर बेचारे को टॉग में चोट थी, फिर भी वह बैठक्के लगाने लगा। साहब की अकड़ अभी काफी थी । आप लेट गये और ऊल-जलूल बकने लगे । मैं उस समय रुद्र बना हुआ था। दिल मे ठान लिया कि इससे विना सौ बैठके लगवाये न छोङूँगा। चार आदमियों को हुक्म दिया कि गाड़ी को ढकेलकर सड़क के नीचे गिरा दो।

हुक्म को देर थी। चार की जगह पचास आदमी लिपट गये और गाड़ी को ढके- लने लगे। वह सड़क बहुत ऊँची थी। दोनो तरफ की जमीन नीची। गाड़ी नीचे गिरी और टूट-टाटकर ढेर हो जायगी। गाड़ी सड़क के किनारे तक पहुंच चुकी थी कि साहब काँखकर उठ खड़े हुए और बोले-बावा, गाड़ी को मत तोड़ो, हम उठे-बैठेगा।