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मानसरोवर


और आइवन उसके साहस और अनुराग से प्रभावित होकर अपनी दुर्बलता पर लज्जित हो जाता।

इन्हीं दिनों उक्रायेन प्रान्त की सूबेदारी पर रोमनाफ नाम का एक गवर्नर नियुक्त होकर आया, बड़ा ही कट्टर, राष्ट्रवादियो का जानी दुश्मन, दिन मे दो-चार विद्रोहियों को जब तक जेल न भेज लेता, उसे चैन न आता । आते-ही-आते उसने कई सम्पादको पर राजद्रोह का अभियोग चलाकर, उन्हे साइबेरिया भेजवा दिया, कृषकों की सभाएँ तोड़ दी, नगर की म्युनिसिपैलिटी तोड़ दो, और जब जनता ने अपना रोष प्रकट करने के लिए जलसे किये, तो पुलिस से भीड़ पर गोलियां चलवाई , जिससे कई बेगुनाहों की जान गई। मार्शल ला जारी कर दिया। सारे नगर मे हाहाकार मच गया। लोग मारे डर के घरो से न निकलते थे , क्योकि पुलिस हरएक की तलाशी लेती थी और उसे पीटती थी । ।

हेलेन ने कठोर मुद्रा से कहा- यह अन्धेर तो अब नही देखा जाता आइवन । इसका कुछ उपाय होना चाहिए।

आइवन ने प्रश्न की आँखो से देखा- उपाय ! हम क्या कर सकते हैं ?

हेलेन ने उसकी जड़ता पर खिन्न होकर कहा--तुम कहते हो, हम क्या कर सकते हैं ? मैं कहती हूँ, हम सब कुछ कर सकते हैं। मैं इन्हीं हाथो से उसका अन्त कर दूंगी।

आइवन ने विस्मय से उसकी ओर देखा- तुम समझती हो, उसे कत्ल करना आसान है ? वह कभी खुली गाड़ी मे नहीं निकलता। उसके आगे-पीछे सशस्त्र सवारी का एक दल हमेशा रहता है। रेलगाडी में भी वह रिजर्व डब्बों में सफर करता है। मुझे तो असम्भव-सा लगता है हेलेन, बिलकुल असम्भव ।

हेलेन कई मिनट तक चाय बनाती रही। फिर दो प्याले मेज पर रखकर उसने प्याला मॅह से लगाया और धीरे-धीरे पीने लगी। किसी विचार में तन्मय हो रही थी। सहसा उसने प्याला मेज पर रख दिया और बड़ी-बड़ी आँखों मे तेज भरकर बोली- यह सब कुछ होते हुए भी मैं उसे कत्ल कर सकती हूँ आइवन ! आदमी एक वार अपनी जान पर खेलकर सब कुछ कर सकता है। जोनते हो मैं क्या करूँगो ? मैं उससे राहो-रस्म पैदा करूंगी, उसका विश्वास प्राप्त करूँगी, उसे इस भ्रान्ति मे डालूंँगी कि मुझे उससे प्रेम है। मनुष्य कितना ही हृदय- हीन हो, उसके हृदय के किसी-न-किसी