पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८१
कैदी


पुलिस के अधिकारी उससे केवल इसलिए असंतुष्ट हैं कि वह जनके कलुषित प्रस्तावों को ठुकरा रही है, यह सत्य है कि विद्यालय मे उसको संगति कुछ उन युवकों से हो गई थी, पर विद्यालय से निकलने के बाद उसका उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। रोम- नाफ जितना चतुर था, उससे कहीं चतुर अपने को समझता था। अपने दस साल के अधिकारी-जीवन में उसे किसी ऐसी रमणी से साबका न पड़ा था, जिसने उसके ऊपर इतना विश्वास करके अपने को उसकी दया पर छोड़ दिया हो। किसी धन- लोलुप की भांति सहसा यह धन-राशि देखकर उसकी आँखों पर परदा पड़ गया । अपनी समझ में तो वह हेलेन से उग्र युवकों के विषय में ऐसी बहुत-सी बातों का पता लगा- कर फूला न समाया, जो खुफिया पुलिसवालो को बहुत सिर मारने पर भी ज्ञात न हो सकी थीं, पर इन बातो मे मिथ्या का कितना मिश्रण है, यह वह न भाँप सका। इस आध घण्टे में एक युवती ने एक अनुभवी अफसर को अपने रूप की मदिरा से उन्मत्त कर दिया था।

जब हेलेन चलने लगी, तो रोमनाफ ने कुरसी से खड़े होकर कहा----मुझे आशा है, यह हमारी आखिरी मुलाकात न होगी।

हेलेन ने हाथ बढाकर कहा- हुजूर ने जिस सौजन्य से मेरी विपत्ति-कथा सुनी है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ!

'कल आप तीसरे पहर यहीं चाय पियें।'

रब्त-जब्त बढने लगा। हेलेन आकर रोज की बातें आइवन से कह सुनाती। रोमनाफ वास्तव मे जितना बदनाम है, उतना बुरा नहीं। नहीं, वह वड़ा रसिक, सगीत और कला का प्रेमी और शील और विनय की मूर्ति है। इन थोड़े हो दिनो मे हेलेन से उसकी घनिष्टता हो गई है और किसी अज्ञात रीति से नगर में पुलिस का अत्याचार कम होने लगा है।

अन्त मे वह निश्चित तिथि आई। आइवन और हेलेन दिन-भर बैठे इसी प्रश्न पर विचार करते रहे । आइवन का मन आज बहुत चंचल हो रहा था। कभी अकारण ही हँसने लगता, कभी अनायास रो पड़ता । शंका, प्रतीक्षा और किसी अज्ञात चिन्ता ने उसके मनःसागर को इतना अशान्त कर दिया था कि उसमे भावों की नौकाएँ डगमगा रही थीं-न मार्ग का पता था, न दिशा का। हेलेन भी आज बहुत चिन्तित और गम्भीर थी। आज के लिए उसने पहले ही से सजीले वस्त्र बनवा रखे थे। रूप‌