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कैदी


कठिन परीक्षा का समय आ जायगा, जिससे उसके प्राण काँप रहे थे। वह कहीं एकान्त मे बैठकर सोचना चाहता था। आज उसे ज्ञात हो रहा था कि वह स्वाधीन नहीं है । बड़ी मोटी जंजीरें उसके एक-एक अंग को जकड़े हुए थीं। इन्हे कैसे तोड़े ?

दस बज गये थे। हेलेन और रोमनाफ पार्क के एक कुञ्ज में बेंचो पर बैठे हुए थे। तेज़ बर्फीली हवा चल रही थी। चाँद किसी क्षीण आशा की भांति बादलो में छिपा हुआ था।

हेलेन ने इधर-उधर सशक नेत्रों से देखकर कहा- अब तो देर हो गई । यहाँ से चलना चाहिए।

रोमनाफ ने बेंच पर पाँव फैलाते हुए कहा-अभी तो ऐसी देर नहीं हुई है हेलेन ! कह नहीं सकता, जीवन के यह क्षण स्वप्न हैं या सत्य , लेकिन सत्य भी हैं, तो स्वप्न से अधिक मधुर, और स्वप्न भी हैं, तो सत्य से अधिक उज्ज्वल ।

हेलेन बेचैन होकर उठो और रोमनाफ का हाथ पकड़कर वोली--मेरा जी आज कुछ चंचल हो रहा है । सिर में चक्कर-सा आ रहा है। चलो, मुझे मेरे घर पहुंचा दो।

रोमनाफ ने उसका हाथ पकड़कर अपनी वगल में बैठाते हुए कहा- लेकिन मैंने मोटर तो ग्यारह बजे बुलाई है।

हेलेन के मुंह से एक चीख निकल गई -ग्यारह बजे ।

हां, अब ग्यारह बजे ही चाहते हैं। आओ, तब तक और कुछ बातें हों। रात तो काली वल:-सी मालम होती है। जितनी देर उसे दूर रख सकूँ, उतना ही अच्छा । मैं तो समझता हूँ, उस दिन तुम मेरे सौभाग्य की देवी बनकर आई थीं हेलेन, नही अब तक मैंने न जाने क्या-क्या अत्याचार किये होते। इस उदार नीति ने वातावरण में जो शुभ परिवर्तन कर दिया, उस पर मुझे स्वयं आश्चर्य हो रहा है। महीनो के दमन ने जो कुछ न कर पाया था, वह दिनो के आश्वासन ने पूरा कर दिखाया । और इसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी हूँ हेलेन, केवल तुम्हारा, पर खेद यही है कि हमारी संस्कार दवा करना नहीं जानती, केवल मारना जानती है। जार के मंत्रियों मे अभी से मेरे विषय मे सन्देह होने लगा है और मुझे यहां से हटाने का प्रस्ताव हो रहा है।

सहसा टार्च का चकाचौंध पैदा करनेवाला प्रकाश बिजली की भांति चमक उठा और रिवाल्वर छूटने की आवाज़ आई। उसी वक्त रोमनाफ ने उछलकर आइवन को पकड़ लिया और चिल्लाया-पकड़ो, पकड़ो, खून ! हेलेन, तुम यहाँ से भागो ?