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मानसरोवर

पार्क में कई सतरी थे। चारों ओर से दौड़ पड़े । आइवन घिर गया। एक क्षण में न जाने कहाँ से टाउन-पुलीस, और सशस्त्र-पुलीस, और गुप्त-पुलीस, और रागर- पुलीस के जत्थे-के-जत्थे आ पहुँचे । आइवन गिरफ्तार हो गया।

रोमनाफ ने हेलेन से हाथ मिलाकर सन्देह के स्वर में कहा-यह आइवन तो वही युवक है, जो तुम्हारे साथ विद्यालय मे था ?

हेलेन ने क्षुब्ध होकर कहा-हाँ है; लेकिन मुझे इसका जरा भी अनुमान न था कि वह क्रान्तिवादी हो गया है।

'गोली मेरे सिर पर से सन्-सन् करतो हुई निकल गई।'

'या ईश्वर !'

'मैने दूसरा फायर करने का अवसर ही न दिया। मुझे इस युवक की दशा पर दुख हो रहा है हेलेन ! ये अभागे समझते हैं कि इन हत्याओं से वे देश का उद्धार कर लेगे । अगर मैं मर ही जाता, तो क्या मेरी जगह कोई मुझसे भी ज्यादा कठोर मनुष्य न आ जाता लेकिन मुझे जरा भो क्रोध या दु ख या भय नहीं है हेलेन, तुम बिलकुल चिन्ता न करना। चलो, मैं तुम्हें पहुंचा दूँ

रास्ते-भर रोमनाफ इस आघात से बच जाने पर अपने को बधाई और ईश्वर को धन्यवाद देता रहा और हेलेन विचारों में मग्न बैठी रही।

दूसरे दिन मजिस्ट्रेट के इजलाम मे अभियोग चला, और हेलेन सरकारी गवाह थी। आइवन को मालूम हुआ कि दुनिया अँधेरी हो गई है और वह उसकी अथाह गहराई मधेसता चला जा रहा है।

( ३ )

चौदह साल के बाद !

आइवन रेलगाडी से उतरकर हेलेन के पास जा रहा है। उसे घरवालों की सुधि नहीं है। माता और पिता उसके वियोग में मरणासन्न हो रहे हैं, इसकी उसे परवाह नहीं है। वह अपने चौदह साल के पाले हुए हिंसा-भाव से उन्मत्त, हेलेन के पास जा रहा है, पर उसकी हिंसा मे रक्त की प्यास नहीं है, केवल गहरी दाहक दुर्भावना है। इन चौदह सालो में उसने जो यातनाएँ झेली हैं, उनका दो-चार वाक्यो मे, मानो सत्त निकालकर, विष के समान हेलेन की धमनियों में भरकर, उसे तड़पते हुए देखकर, वह अपनी आंखों को तृप्त करना चाहता है । और वह वाक्य क्या है ? हेलेन, तुमने मेरे