पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

मिस पद्मा

कानून में अच्छी सफलता प्राप्त कर लेने के बाद मिस पद्मा को एक नया अनुभव हुआ, वह जीवन का सूनापन। विवाह को उसने एक अप्राकृतिक बंधन समझा था और निश्चय कर लिया था कि स्वतन्त्र रहकर जीवन का उपभोग करूंगी। एम॰ ए॰ की डिग्री ली, फिर क़ानून पास किया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। रूपवती थी, युवती थी, मृदुभाषिणी थी और प्रतिभाशालिनी थी। मार्ग मे कोई बाधा न थी। देखते-देखते वह अपने साथी नौजवान-मर्द वकीलों को पीछे छोड़कर आगे निकल गई, और अब उसकी आमदनी कभी-कभी एक हजार से भी बढ़ जाती। अब उतने परिश्रम और सिर मराज़न की आवश्यकता न रही। मुकदमे अधिकतर वही होते थे, जिनका उसे पूरा अनुभव हो चुका था, उनके विषय की किसी तरह की तैयारो को उसे ज़रूरत न मालूम होती । अपनी शक्तियों पर कुछ विश्वास भी हो गया था, कानून मे कैसे विजय मिल सकती है, इसके कुछ लटके भी मालूम हो गये थे , इसलिए उसे अब बहुत अवकाश मिलता था और इसे वह किस्से कहानियाँ पढने, सैर करने, सिनेमा देखने, मिलने-मिलाने में खर्च करती थी। जीवन को सुखी बनाने के लिए किसी व्यसन की ज़रूरत को वह खूब समझती थी। उसने फूल-पौदे लगाने का व्यसन पाल लिया था। तरह-तरह के बीज और पौदे मॅगाती और उन्हें उगते-बढते, फूलते- फलते देखकर खुश होती; मगर फिर भी जीवन मे सूनेपन का अनुभव होता रहता था। यह बात न थी कि उसे पुरुषो से विरक्ति हो । नहीं, उसके प्रेमियों की कमी न थी , अगर उसके पास केवल रूप और यौवन होता, तो भी उपासकों का अभाव न रहता ; मगर यहाँ तो रूप और यौवन के साथ धन भी था। फिर रसिकवृन्द क्यो चूक जाते। पद्मा को विलास से तो घृणा थी नहीं, धृणा थी पराधीनता से, विवाह को जीवन का व्यवसाय बनाने से। जब स्वतत्र रहकर भोग-विलास का आनंद उङाया जा सकता है, तो फिर क्यों न उड़ाया जाय ? भोग में उसे कोई नैतिक