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मानसिक शक्ति।
 

ग्रन्थकार का कथन है कि मनुष्य अपने उच्च नीच विचारों के अनुसार अपनी उच्चनीच अवस्था में रहते हैं। उनका संसार इतना संकीर्ण और अन्धकार मय है जैसे कि उनके संकीर्ण और गन्दे विचार होते हैं। परंतु यदि विचार उदार और उत्तम हैं तो उनका कार्य भी बड़ा और सुन्दर है। उनके चारों ओर की वस्तु उन विचारों के रंग से रंग जाती है।

जिस प्रकार लड़की पहले अच्छा नहीं लिख सकती थी, परंतु ज्योंहीं आदर्श लेख को उसने अपने सामने रखा त्योहीं वह सुन्दर लिखना सीख गई, उसी प्रकार आत्मा के सामने भी कोई आदर्श चरित्र होना चाहिए जिसकी ओर बढ़ने का वह यत्न करे, यदि वह कुछ उन्नति करना चाहता है। पहले हमको अपने आत्म-बल की परीक्षा करनी चाहिए जिससे हम अपने आप को जान जाँए। मनुष्य का मन बहुत ही गम्भीर है और अपने आपका ज्ञान करना ऐसा सरल नहीं है जैसा कि पहले पहल दीखता है। यदि हम विचार अधिकार के बाबत थोड़ा भी जानना चाहते हैं तो पहले हमको अपना ज्ञान होना चाहिए। हम अपने विचारों के टुकड़े करें, अपनी इच्छाओं की संभाल करें और अपने से पूंछे कि हमने वह कहां और यह क्यों किया? हम फिर से गतदिन और घंटे को याद करें और अपने प्रत्येक कार्य को तराजू में तौलें। क्या हम ऐसा करने के लिए तैयार हैं? यदि हैं तो हमें प्रतिदिन आत्म-परीक्षा के लिए थोड़ा बहुत समय खर्च करना चाहिए जिससे हमें यह ज्ञान हो जाए कि हम क्या हैं और कहाँ हैं? अपनी आत्मा पर सत्यता का पूर्ण प्रकाश डालने से मत डरो, जो कुछ तुम्हें उस समय प्राप्त हो उसे स्वीकार