पृष्ठ:मानसिक शक्ति.djvu/१३

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मन की उत्पादन शक्ति ।
 


और बेकार बनाये रही। दिन आया, दिन गया, ईश्वर ने एतवार छुट्टी का दिन दिया इत्यादि प्रकार का जीवन रह गया। अन्य समय में जब हम इसको काम में लाए भी तो बुरे कामों में। हमने अपने मन को रोग और शोक में, दुःख और विपत्ति में, पश्चात्ताप और प्रलाप में लगाया। मानो ये मनुष्य के भाग्य में ही हैं। वास्तव में हमने स्वयं इन चीजों को पैदा किया और विचार की उत्पादन शक्ति द्वारा अपनी ओर आकर्षित कर लिया। मन उत्पादक है। इस कथन की सत्यता जितनी हम माने उतने ही अच्छे अच्छे विचार और योगावस्था हम उत्पन्न करेंगे; परन्तु यदि मन द्रुतगामी घोड़े को भांति हो जो दाँतो के बीच लगाम होने पर भी क्रोध और अहंकार भय और भ्रम के कारण वेग से दौड़ा चला जा रहा है, तो उससे उसकी भी वैसी ही अवस्था हो जाएगी; कषाय से दुःख और रोग उत्पन्न होगा। क्रोध से आत्मा क्रूरता और शरीर में कठोरता आती है जिससे जीवन महा दुखमयी हो जाता है और विपत्ति और रोग का कारण होता है। भय और घबराहट से काम में असफलता और दरिद्रता का चित्र सामने आता है और यह समझने लगता है कि मैं अभागी हूँ, निर्धनी हूँ। फिर इस विचार का उसके जीवन पर प्रभाव पड़ता है।

एक बार एक छोटा सा जल-प्रपात किसी पहाड़ी से नीचे बह रहा था। इसका उद्गम उस पहाड़ी के ऊपर था और इसका जल नीचे बहकर समुन्दर की ओर जा रहा था। उसको बहते हुए युग व्यतीत हो गए परन्तु किसी को इस बात का ज्ञान स्वप्न में भी न हुआ कि पानी की उस धारा में कोई