की खोज में हैं। वे इस बात को समझ रहे हैं कि मनुष्य आत्मा का आदमत्व क्या है और यह समझ रहे हैं कि मैं क्या हूँ? और इसका फल यह है कि वे सुखी और आनन्दित करने के लिए उत्पाद-शक्ति को प्रयोग में लाने का उद्योग कर रहे हैं। अब उन्हें मालूम हो रहा है कि वे जीवन समुद्र में बहते हुए काष्ट की भाँति भाग्य और परस्थितियाँ रूपी लहरों के आधीन नहीं हैं। उन्हें मालूम हो गया है कि हम अपने भाग्य और बाह्रय परस्थितियों के निर्माता स्वयं ही हैं और हमी अपने विचार-स्रोत पर पूर्ण अधिकार रखते हैं। हमही उनके मार्ग को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं; हमही खराबी को दूर कर सकते हैं और उसको सदमार्गों पर लगा सकते हैं। वे यह मालूम करने लगे हैं कि हमारे भीतर एक शक्ति विद्यमान है जिसको उचित मार्ग पर लगाने से हमें सब प्रकार का सुख और शांति मिल सकती है।
जब मनुष्य को इस सत्यता का पता लग जाता है तो उसे कैसी खुशी होती है। इस बात के जानने के आनन्द का क्या कहना कि हमारा जीवन भी उतना ही अच्छा और उत्तम बन सकता है जितना कि हमारे पड़ोसियों का है। हमारे नेत्र खुल गए हैं और अब हम देख सकते हैं कि हम निर्धन केवल इस कारण से रहे हैं कि हमने उस भलाई को नहीं प्राप्त किया जोकि हमारे चारों ओर थी। ठीक बात है उस समय हमारे नेत्र ऊपर को उठे हुए थे इससे हमने उसको स्वप्न में भी नहीं देखा। हमने एक बार भी इस बात पर विचार नहीं किया कि सूर्य का प्रकाश हमारे लिए परिमित है या नहीं जब कि दूसरे उस की जीवन-प्रद-रश्मियों का भण्डार रखते हैं।
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