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मानसिक शक्ति।
 


यह करो, वह करो, परंतु उस अमूल्य रत्न के बाबत कुछ भी सुनाई नहीं देता जोकि हमारे हृदय में छिपा हुआ है और उसको पहिचानने की आवश्यकता है।

मुझे प्राय: इस पर बड़ा अचम्भा होता है कि क्या फल होगा यदि कुछ साहसी धर्म गुरु अपना साधारण उपदेश देने के बजाय जिसका लोगों पर बहुत ही कम प्रभाव पड़ता है यदि जोर के साथ यह कहें, 'घर जाओ और विचार करो' यह कितनी बड़ी शिक्षा होगी।

मनुष्यों को विचार करने का ढंग बतलाना चाहिए इसकी बड़ी आवश्यकता है। यह विचार तो सीधा है परंतु जब जनता के लिए इस नियम का उपयोग किया जाता है तो यही सबसे बड़ी आपत्ति उपस्थित होती है। मनुष्य कब देखेंगे और जानेंगे कि उनकी सफलता कार्य में नहीं है बल्कि कार्य की विधि में और विचार ही विधि है।

मनुष्य वैसा ही होगा जैसा उसका विचार होगा किसी बात के ऊपर गम्भीर और पूर्ण विचार करो। यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारे मस्तक में विशेष प्रकार के विचार के लिए स्थान बन जाएंगे। यदि तुम्हारे विचार गन्दे और तुच्छ होंगे तो उस समय उस स्थान को दूर करके बुरे विचार से छुटकारा पाना कठिन जान पड़ेगा। जो विचार बार बार मस्तक में उठा करता है वह लोहे की कड़ी के समान है जो तुम्हें दृढ़ता से उस वस्तु के साथ जकड़ता है जिसका तुमने विचार किया है। यदि तुम्हारे विचार गन्दे और घृणित हैं तो जितने बुरे और घृणित वे हैं उतने ही नीच और घृणित

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