गुरु हैं वे अपने शिष्यों को इतना ज्ञान देते हैं जितना उनके शिष्य भली भांति प्रयोग में ला सकते हैं। प्रत्येक मनुष्य उस बुद्धिमान के सदृश उत्तर नहीं दे सकता कि जब उस आदमी पर दिव्य-ज्योति का प्रकाश पड़ा और जब उसे दैववाणी यह कहते हुए सुनाई दी कि तुम क्या चाहते हो। उसने उत्तर दिया, मुझे बुद्धि और ज्ञान दो। और उसने यह स्वार्थ साधन के लिए नहीं मांगा किन्तु जनता की भलाई, शान्ति और सुख के लिए मांगा। आजकल के बहुत से मनुष्य तो अपने गुरु से कोई बेटा, कोई धन और कोई स्त्री मांगते हैं और स्वार्थ साधन में ऐसे लीन हैं कि ज्ञान प्राप्ति तक उनका ध्यान ही नहीं पहुंच सकता।
इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि विचार की उत्पादक शक्ति बड़ी ही प्रबल है इसके द्वारा पुरुष अथवा स्त्री अपने को जैसा चाहें वैसा बना सकते हैं और इसमें भी सन्देह नहीं कि हम अपने को प्रतिदिन कुछ न कुछ बना रहे हैं। यह बात सत्य है कि हमारी परस्थितियों हमारे बाह्य क्षेत्र हमारे अनुभव और हमारे सम्बन्धों का हमारे चहुं ओर के आदमियों और पदार्थों से बहुत सा ऐसा सम्बन्ध है कि इसमें हम चाहते हैं कि एक साथ परिवर्तन हो जावे और जैसे के तैसे न रहें किन्तु हमारी इच्छानुसार बनजावें; ऐसा करना कार्य कारण के नियम को तोड़ना होगा।
प्रत्येक मनुष्य का विचार उसके जीवन का निर्माता और कर्ताधर्ता है। यह बात कुछ विचित्र मालूम होती है परन्तु बिल्कुल सत्य है किन्तु कभी मनुष्य इसका ध्यान नहीं रखते और
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